हर दिन कॅरोना के नए मामले और बढ़ते मामले सामने हमारे देश में भी आने लगे। हर चेहरे पर एक दहशत का माहौल दिखने लगा। राज्य सरकार भी कड़े रूख अपनाने लगी। हर शहर को बंद किया जाने लगा। एक वायरस ने पूरे देश में हडकंप मचा दिया। ऑफिस ,बाजार मॉल सब खाली हो गए। लोगों से अपील की जाने लगी की काफी जरूरत हो तभी वो बाहर निकले। वरना अपने अपने घरो में ही रहे।
हर माँ की तरह मैं भी अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर सचेत हो गई। लेकिन इन सबमे सबसे बड़ी चुनौती अपने बच्चो को घर के अंदर रखना लगने लगा। दो कमरे और तीन कमरों के फ्लैट में बच्चो का ऊबना कोई नई बात न है। शाम को थोड़ी देर घूमना और बाहर खेलना उनके स्वास्थ्य के लिए हर मा को लाभदायक भी लग रहा था तो बच्चो को भी थोड़ा अच्छा लगता है। कुछ ऐसा ही रूटीन मेरे बेटे नंदन का भी है। तीन साल के नंदन को बाहर खेलना , सड़को पर भागती हुई गाड़िया देखना और अपने उम्र के बच्चो के साथ दौड़ना भागना काफी पसंद है। लेकिन इस वाइरस के कारण मुझे उसे बाहर खेलने ले जाना या छोड़ना काफी मुश्किल लगने लगा।
अब उसे ज्यादा से ज्यादा समय घर में देने लगी। कभी उसके साथ खेलती तो कभी उससे बातें करती। तो कभी उसे कहानिया सुनाने लगी। लेकिन मेरा दिन अब इसी सब में निकलने लगा। यानी की मेरा मी टाइम अब खत्म हो गया।
लेकिन इसके बाबजूद भी कभी-कभी नंदन सोसाइटी में खेलने जाने या साइकिल चलाने जाने की जिद करने लगा तो कभी अपनी अंगुलियों को मुँह में डालता। मैं कितना भी मना करती पर थोड़ी देर बाद फिर वही करता ।मैं भी थोड़ी थकने लगी की इसे अब कैसे समझाऊ। हर आते जाते आदमी को देख ये रोता तो मेरा मन भी दुखी होने लगा।फिर एक दिन मै उसके साथ बैठ कर कार्टून देख रही थी। इस बीच मै नोटिस की कि वो विलेन पात्रो से हीरो को बचाने की कोशिश में किलकारियां निकल रहा। मुझे लगा अब सही समय है इसे समझाने का।
फिर मै तुरन्त ही उसके ड्राइंग बुक में एक वर्म (कीड़ा ) का फोटो बनाई। और फिर उसके हाथ पर अपने हाथो से वर्म के जैसे सहलाते हुए उसके गले तक ले गयी । हल्का से चुभाते हुए बोली- नंदन ये वर्म है। और ये ऐसे ही चलते है और काटते भी है। वो थोड़ा आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगा। फिर मै उसे समझाते हुए बोली- नंदन आजकल बाहर ऐसे ही वर्म घुम रहे है। जो सबको पकड़ने की कोशिश कर रहे है। इसलिए तुम्हे मैं बाहर खेलने नही जाने दे रही।
वो बोला-" वर्म काट लेगा क्या मम्मा। " मैने उसे बताया बेटा वर्म तो गंदे होते ही है, आप घर में भी अपने मुह में बार बार अंगुली डालोगे तो वो घर में भी आ जाएंगे। मेरी बात सुन कर थोड़ी देर तक चुप रहा फिर वो अपनी टूटी फूटी भाषा में अपने पापा को वर्म के बारे में बताने लगा। फिलहाल तो मैं थोड़ी रिलेक्स हो गयी की चलो, कुछ तो समझ आया लेकिन अभी कितना समझ आया ये देखना बाकी था। थोड़ी देर में दूध वाला आया वो अपने हाथो में दस्ताने और चेहरे पर मास्क लगाए हुए था। जैसे ही दरवाजा खोला उसे देखते ही बोलने लगा। मम्मा....अंकल....वर्म...यानी मम्मी अंकल को भी वर्म काट लेंगे क्या?
मै बोली -"हा बेटा, अंकल वर्म से फाइट करने के लिए ही ये अब पहने है। लेकिन आप छोटे बेबी हो इसलिए आप घर में ही रहो।"
मेरे बेटे को ये बात थोड़ी थोड़ी समझ आ गई । अब मै उसे समझा कर हाथ भी टाइम तो टाइम धुलवाने लगी तो बाहर जाने से भी मना कर दी। थोड़ी सी टाइम भी खुद के लिए बचाने लगी क्योंकि अब वो घर में रखे अपने खिलौनों से खेलने में लग गया। हा बोर तो होता है, लेकिन फिर कुछ नए आईडिया के साथ मै उसे दूसरे खेल या कामो में उलझा देती हूँ।
सच ,
धन्यवाद
आपकी दोस्त
पम्मी राजन
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