"शीशा ए दिल में छुपा है "ए सितमगर"तेरा प्यार बस जरा गर्दन झुका ली देख ली तस्वीरे यार"।
शायद यह गाना एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे के लिए गा रहा है,मगर मै अपने ईश्वर के लिये गाती हूँ।
"अब तक दर्शन नही दिये केवल एक अहसास हैं वो...मुझसे दूर नहीं मेरे आस-पास हैं वो।।"
सच ही तो है... कितने निकट होते हैं ! हमसे हमारे ईश्वर ! मगर हम ही उनसे दूरी बना लेते हैं।पता नहीं क्या- क्या जतन करते हैं? तैयारी करते हैं कि, प्रभु प्रसन्न हो जाएं।
घंटे घड़ियाल बजाते हैं, शंख फ़ूकते हैं ,दिया अगरबत्ती जलाते हैं ,व्रत -उपवास और जाने क्या-क्या कर्मकांड करते हैं ।मगर कभी विचार किया है कि, कब प्रभु ने आपसे यह सब मांगा ?ईश्वर तो केवल भाव के भूखे होते हैं !प्रेम भाव के!
हम एक सामान्य से इंसान, जगत को चलाने वाले सर्व शक्तिमान ईश्वर को, क्या अर्पित कर सकते हैं?
हम जो कुछ भी उन्हें देते हैं, वह सब कुछ उन्ही का तो दिया है!आखिर जो कुछ भी फल, फूल मिष्ठान दिया जा रहा है, सबकुछ, उस प्रभु का ही दिया हुआ है ।
यह सारी प्रकृति उस एक ईश्वर की ही बनाई हुई है । केवल मन की सच्ची श्रद्धा ही हमें ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रदान करती है हमारे ईश्वर हमारे अंदर ही विद्यमान है उन्हें बाहर नहीं ढूंढना चाहिए।
केवल उनकी प्रार्थना ही हमें वह बल प्रदान करती है ,जिसके दम पर हम प्रत्येक विपरीत परिस्थितियों पर काबू पा सकते हैं। इसलिए गांधी जी ने भी कहा था ! यदि मैं प्रार्थना नहीं करता तो, शायद कब के पागल हो गया होता।
आज के संदर्भ में भी डिप्रेशन, निराशा मे डूबे हुए व्यक्ति यदि, प्रार्थना की शक्ति पहचान जाएं तो ,कभी भी निराशा के भंवर में ना फंसे।
इसलिए हर व्यक्ति को ,इस जगत में विद्यमान परम शक्ति की, उपासना करनी चाहिए, क्योंकि इतनी बड़ी व्यवस्था का संचालन केवल और केवल प्रभु की कर सकते हैं।
इतने- इतने मधुर फल, हर फल की मिठास अलग। इतने सुंदर फूल ,हर फूल का रंग अलग। इतने सारे मनुष्य, हर मनुष्य का चेहरा अलग। यह सब उस परमपिता परमेश्वर की रचना है।
इस सुंदर जगत में मुझे सुंदर जीवन देने के लिए मेरे मालिक तेरा शुक्रिया।
पल्लवी वर्मा
स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुंदर आलेख मैम।क्या खूब लिखा आपने
भक्ति ही तो इस कठिन काल में हमे शक्ति प्रदान किए हुए हैं
संदीप जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
सुषमा संदीप जी बहुत बहुत आभार आपका
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