नाज़ है तुम पर

साथ देना हमेशा

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Pallavi verma
Pallavi verma 30 May, 2020 | 1 min read

हनीमून से लौटकर दिवाकर ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया। यहां काव्या अभी भी उधेड़बुन में थी कि,शादी के कितने दिन बाद ऑफिस फिर से ज्वाइन करूँ?

कहीं सास ससुर बुरा ना मान जाए। उसने सोचा अभी दिवाकर से पूछने का कोई मतलब नहीं। वह बिना कारण परेशान हो जाएंगे।

फैमिली को नई बहू से कितनी अपेक्षा होती है और इन सबकी तरफ मेरा भी तो कोई कर्तव्य है।

मैं इस ऑफिस से इस्तीफा देकर नया ऑफिस ज्वाइन कर लूंगी , तो छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी।

आजकल नया जॉब तो मिल जाता है,पर छुट्टी नहीं मिलती ।

यह सोचकर उसने अपना इस्तीफा लिखकर लिफाफे में रख दिया। दिवाकर ऑफिस से आकर कपड़े बदले,वही काव्या के पर्स से झांकता लिफ़ाफ़ा दिखा, उसने लिफाफा खोलकर देखा, काव्या का इस्तीफा पढ़ उसे बहुत अजीब लगा , इतनी अच्छी जॉब काव्य क्यों छोड़ रही है ? क्या बात हो सकती है ?

वहां किचन में काव्या पूरे मन से खाना बनाने में लगी हुई थी । दिवाकर ने पूछा "तुम ऑफिस कब से जॉइन कर रही हो ?"

काव्या हड़बड़ा गई! उसने कहा "अभी नहीं" दिवाकर ने सभी पर परिवार के सदस्यों के सामने कहा! सारे फंक्शन तो हो गए! अब किस बात की छुट्टी ?

काव्या ने कहा! मैं कुछ दिन परिवार के साथ बिताना चाहती हूं।

दिवाकर ने कहा ऑफिस जाने से परिवार के साथ का क्या संबंध है? क्या मैं उनके साथ नहीं हूं?

काव्या चुप रही दिवाकर ने कड़े शब्दों में कहां! तुम समय बिताना नहीं चाहती! भारतीय बहू बनकर सबको इंप्रेस करना चाहती हो।सारा परिवार अवाक रह गया । दिवाकर ने कहा! आज के समय में औरत और आदमी का कैरियर अलग अलग नहीं रह गया है।दोनों का केरियर उतना ही महत्वपूर्ण है। जितना की एक आदमी का कैरियर को पहले महत्वपूर्ण माना जाता था।

काव्या चुपचाप सुबक रही थी दिवाकर ने उसे बिठाया ,और एक गिलास पानी देकर कहा! "इस घर में सब मिलजुल कर रहते हैं। काम करते हैं, चाहे वह काम घर का हो या बाहर का, काम का कोई जेंडर नहीं होता है तो करने वाले का जेंडर क्यों देखा जाता है बाहर तुम को और मेरे को एक समान तकलीफों का सामना करना पड़ता है पैसा कमाना आसान नहीं खुद की पोजीशन बनाना आसान बात नहीं तुम यह कुर्बानी देकर अपना कैरियर तो दांव पर लगा ही रही थी मेरे से यह इस्तीफा छुपा कर मेरे दिल को भी ठेस पहुंचा रही थी ।

काव्या को गर्व हो रहा था कि,कितना सुलझा हुआ परिवार और पति उसकी जिंदगी में है।

अब वह अपने परिवार के साथ साथ अपने कैरियर की तरफ भी पूरा ध्यान देगी। और सबका साथ मिलने पर वह सफलता की ऊंचाइयों को एक दिन जरूर छूएगी।

दोस्तों आपको क्या लगता है? शादी के बाद एक स्त्री को अपना जॉब छोड़ देना चाहिए या कंटिन्यू रखना चाहिए।

क्या उसे ससुराल में बराबरी का स्थान मिलता है? केरियर चुनने की कितनी स्वतंत्रता है उसे? राय जरूर दें।

धन्यवाद

पल्लवी वर्मा

स्वरचित मौलिक


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Pallavi verma

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