सार्थक अपनी छत पर सोया हुआ था। आज गर्मी कुछ ज्यादा ही थी ।कूलर की हवा बिल्कुल काम नहीं कर रही थी जब वह,पसीने से तरबतर हो गया तो,अपने दादा जी से बोला कि मैं बिल्कुल नहीं सो पा रहा हूं,आप बताइए मैं क्या करूं??दादाजी ने कहा बेटा मैं भी बहुत परेशान हूं!!हमारे जमाने में हम सभी छत पर गद्दे डालकर सोया करते थे ।उस समय इतने मच्छर नहीं थे और जो हालात अब हो चुके हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है,पहले नहीं थी ।
हम इत्मीनान से छत पर लेट कर आपस में बातें करते हुए कब नींद की आगोश में समा जाते थे हमें पता ही नहीं चलता था।
सार्थक जिद करने लगा चलिए ना, आज हमारे साथ भी छत पर चल कर सोइये।
आप जैसा कहेंगे मैं वैसा इंतजाम करूंगा मैंने तो यह सब कभी देखा भी नहीं, दोनों मिलकर , छत में चटाई बिछाते हैं। गद्दे डालते हैं ।दो तकिया और मच्छरदानी लगाते हैं।
दादाजी अब भी सुराही का पानी पीते थे वे उसे अपने नजदीक ही रख लेते हैं। सार्थक को भी सुराही का पानी बहुत मीठा लगता था ।
दोनों जाकर छत में सो जाते हैं हालात तो पहले जैसे नहीं रहे, सार्थक!! मगर अब भी हवा उतनी ही ठंडी जान पड़ती है ,जितनी, तेरी दादी के जिंदा रहते थी ।हम ऐसे ही सोया करते थे ।
सार्थक ने पूछा दादाजी ऊपर कितने सारे तारे दिख रहे हैं क्या हम इन्हें गिन सकते हैं।
दादाजी ने कहा इतने सारे तारों का तो नहीं पता पर हां !मेरी मां मुझे संस्कृत पढ़ाने सुबह 4:00 बजे उठाया करती थी ,और मुझे ध्रुव तारा जिसे भोर का तारा भी कहते हैं ,वह दिखाया करती थी।
सार्थक ने जिद की कि दादा जी आप मुझे भी ध्रुव तारा दिखाएंगे, दादाजी ने कहा... हां सार्थक ।
दादाजी और सार्थक की आवाज सुनकर सार्थक के माता पिता भी ऊपर आ गए ।उन्होंने कहा सच पिताजी!! आप दोनों को यहां सोता देख मेरा मन भी कर रहा है ।
आप ही बताइए कि हम कैसे अपनी धरती को सवार सकते हैं?? दादा जी ने कहा ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाकर हम संतुलन बना सकते हैं। जोकि प्रदूषण के कारण बिगड़ चुका है, जल का स्तर बहुत नीचे जा चुका है, तो यह धरती मां सुरक्षित रहेगी और हम सार्थक को भविष्य में सुंदर धरती धरोहर के रूप में दे सकते हैं ।
कुछ देर बाद सार्थक को नींद आ जाती है ठीक 4:00 बजे सार्थक के दादाजी उसे ध्रुवतारा दिखाते हैं ,और उससे संबंधित पुरानी कथा भी सुनाते हैं।
आज सार्थक यही सब बातें स्कूल जाकर अपने दोस्त को भी सुनाता है ,अध्यापक उनकी बातें गौर से सुन रहे होते हैं ।वह तुरंत निर्णय लेते हैं कि आज किसी ना किसी को तो कठोर कदम उठाना ही होगा, ताकि धरती मां सुरक्षित रहे।
सार्थक के दादाजी के प्रयास को आगे बढ़ाना होगा मैं साइंस का प्रोजेक्ट बनाकर बच्चों को समझाता हूँ कि,जल कैसे बचाया जा सकता है??जिससे जल का स्तर बना रहे ।पौधे लगाकर बढ़ती गर्मी को रोका जाए ।सारे बच्चे भविष्य में एक हरी भरी धरती में रह सके ।इसके लिए वे सब मिलकर इकट्ठा होते हैं ।
आज सार्थक के दादाजी स्कूल मे चीफ गेस्ट बन कर आए हैं। सार्थक को वाटर हार्वेस्टिंग विषय पर बोलना है दादा जी ने बहुत सुंदर शब्दों में इसे तैयार कराया है विषय ...पानी की बचत और आज की जरूरत।
सार्थक ने बहुत अच्छे तरीके से इसे समझाया और इस विषय पर उसे प्रथम स्थान भी प्राप्त हुआ।
दोस्तों हम सभी को इस कहानी से सीख लेते हुए अपनी धरती की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ,और सार्थक के दादा के सामान अपना उत्तरदायित्व निभाना चाहिए।
धन्यवाद
पल्लवी वर्मा
स्वरचित
पल्लवी वर्मा
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