बेटी पतंग तू,तो मैं तेरी डोर

ढील,भी ज़रूरी और लगाम भी

Originally published in hi
Reactions 0
1404
Pallavi verma
Pallavi verma 22 Jan, 2020 | 0 mins read

तन्वी ने,अभी सोलहवे साल में कदम रखा ही था कि आसमान में पतंग जैसी उड़ान भरने लगी।

दुनिया की असल सच्चाई से अनभिज्ञ किसी की नहीं सुनना चाह रही थी। कई बार,कई तरीकों से समझाने की कोशिश भी नाकाम हो रही थी ।

पिता जानते थे उम्र की इस दहलीज पर एसा होता है,मगर आसमान में कीट पतंगे कम नहीं हैं।

मन ही मन सोचा,मेरी बच्ची तू पतंगो सा,खुली आसमानो मे जितना मर्जी लहरा,मै डोर सा,तुझे दिशा दूंगा,कभी ढील देकर तुझे अटखेलियां करते देखूँगा,तो कभी,डोर खीच कर तुझे आश्वासन दूंगा कि मै यहीं हूँ, तेरे आस पास,कभी पेंच लड़ाकर चील गिद्ध रूपी पतंगो को काट,सुरक्षित रखूगा तुझे,हमेशा।तू पतंग,मेरी बच्ची,मैं तेरी डोर ।

0 likes

Published By

Pallavi verma

pallavi839570

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.