तन्वी ने,अभी सोलहवे साल में कदम रखा ही था कि आसमान में पतंग जैसी उड़ान भरने लगी।
दुनिया की असल सच्चाई से अनभिज्ञ किसी की नहीं सुनना चाह रही थी। कई बार,कई तरीकों से समझाने की कोशिश भी नाकाम हो रही थी ।
पिता जानते थे उम्र की इस दहलीज पर एसा होता है,मगर आसमान में कीट पतंगे कम नहीं हैं।
मन ही मन सोचा,मेरी बच्ची तू पतंगो सा,खुली आसमानो मे जितना मर्जी लहरा,मै डोर सा,तुझे दिशा दूंगा,कभी ढील देकर तुझे अटखेलियां करते देखूँगा,तो कभी,डोर खीच कर तुझे आश्वासन दूंगा कि मै यहीं हूँ, तेरे आस पास,कभी पेंच लड़ाकर चील गिद्ध रूपी पतंगो को काट,सुरक्षित रखूगा तुझे,हमेशा।तू पतंग,मेरी बच्ची,मैं तेरी डोर ।
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