शीर्षक-जय जवान,जय किसान
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किसान तके, आसमान
बारिश होती ,असमान
फसल लहराए, या सूखा पड़े
सोच काटता ,उम्र तमाम
मट्टी से सनता, फिर बनता
गेहूँ सुनहरा ,कनक समान
भूख मिटाता ,फिर भी ना मिलता
उसको ,अन्नदाता का मान
बैलों सा जुतता,काटता,सींचता
सेवा करता ,जैसे, फसल हो,संतान
कर्जे का मारा,ये किसान बेचारा
और माल बनाते,बिचौलियें तमाम
भूल गए हम भारतीय शायद
शास्त्री का नारा,और गुणगान
याद करो, और कदर करो
दोहराओ ,जय जवान,जय किसान
आत्म हत्या कर रहे,इन्हे ,बचा लो,
ओ... अहसानफरोश...अधम...इन्सान।
किसान के साथ आज के दौर में जो नाइंसाफी हो रही है ,जिस महंगाई की मार से वह हार गया है ,और आत्महत्या के लिए कदम बढ़ा चुका है। क्या हम सब का फर्ज नहीं बनता कि जिस किसान के द्वारा हमारा उदर पोषण हो रहा है ,उसकी तरफ ध्यान दें।
हम सब एकजुट होकर के किसान को संरक्षण दे ।
नए नए किस्म के बीजों, खादो के द्वारा उसे सहायता दे वैज्ञानिक खोजो में जो नए-नए अविष्कार हो रहे हैं, वह ओजार और यंत्र दे, ताकि वह उन्नत फसल उगा सके। और धन अर्जित कर सके। कब तक वह कर्ज में डूबा रहेगा शास्त्री जी का नारा ,जय जवान जय किसान याद करने का समय आ चुका है ।याद रखें किसान हमारे अन्न उत्पादक ही नहीं,समाज का महत्वपूर्ण अंग हैं ।
जय हिंद
पल्लवी वर्मा
स्वरचित
पल्लवी वर्मा
स्वरचित
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