गर्भपात और कानून

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Pallavi verma
Pallavi verma 18 May, 2020 | 0 mins read

भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के अनुसार

किसी गर्भवती महिला को अपने शरीर पर और अपने गर्भ में पल रहे बच्चे पर पूरा अधिकार होता है ।उसकी रजामंदी के बिना किसी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि, वह गर्भपात करवा दें फिर भी यदि कोई, उसकी बिना जानकारी के या उस पर दबाव डालकर गर्भपात करवाता है तो वह कानून का अपराधी कहलाएगा।

डॉक्टर ,पति या रिश्तेदार सभी कोई अपराधी की श्रेणी

चाहे वह महिला का पति हो ,प्रेमी हो, रिश्तेदार हो या गर्भपात करने वाला डॉक्टर ... इनमें से किसी को भी 3 साल तक की सजा हो सकती है, यदि उन्होने महिला की सहमति के बिना उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण का गर्भपात कराया जाता है तो ।

कितनी सजा

10 साल तक कैद या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराया जा रहा हो और इस दौरान उसकी मौत हो पाए तो दोषी को उम्रकैद की सजा दिए जाने का प्रावधान है।

क्या है स्त्री के पक्ष मे गर्भपात कानून

1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट बनाया गया है ,इस कानून के तहत 20 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी को महिला के वेलफेयर को देखते हुए डॉक्टर की सलाह से टर्मिनेट किया जा सकता।

1* यदि गर्भ में पल रहे शिशु का मानसिक यह शारीरिक विकास ना हुआ हो

2* यदि शिशु डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त हो

3*यदि महिला का बलात्कार हुआ हो

4*यदि इस महिला की शारीरिक स्थिति गर्भ संभालने लायक ना हो

गर्भपात के 1971 के अधिनियम मे संशोधन कर इसे 24 हफ्ते तक के गर्भ को टर्मिनेट करने का प्रावधान किया गया है ताकि रेप विक्टिम को राहत मिल सके।

पल्लवी वर्मा

स्वरचित

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