करवट

धरती का मोल पहचानो।

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Pallavi verma
Pallavi verma 19 Apr, 2020 | 1 min read

एक अदृश्य और अनजाना,

कर रहा,चहुँ ओर हंगामा ।

हो रहे बच्चे, बहुत ही खुश,

दिख रहे हैं घर मे, बाबा-माँ ।

सुना रही दादी कहानियाँ,

खा रहे घर का, बना खाना ।

धरती फ़िर से ले रही, करवट,

आ गया सतयुग का ,ज़माना ।

मोबाइल, दोस्तों में पड़े थे, जो,

प्यार-परिवार क्या है ? पहचाना ।

खुद को समझ रहे थे ! जाने क्या?

हैसियत क्या है ? ये अब जाना ।

है ज़रुरत हमको, थोडी-सी,

जोड़ रहे हम, फ़िर भी, खजाना।

धरती का,मूल्य पहचानो।

नही तो, प्रकृति को भी....आता है, समझाना।।


पल्लवी वर्मा

स्वरचित

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Pallavi verma

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