स्त्री को आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता क्यों है??
शीर्षक--:: अफसर बिटिया
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ममता-: मम्मी कॉलेज के लिए लेट हो रहा है !
और आज प्रोजेक्ट भी सबमिट करना है।
माँ-: हां बेटा!! नाश्ता तैयार है !!जल्दी से खा लो,
दादी -: अरे आराम से बैठ, आराम से ,चबा चबा कर खा। तेरा काय का प्रोजेक्ट- ब्रोजेक्ट।
कितने ही नंबर आ जाए ?? करना तो चूल्हा चौका ही है। मैं तो कहती हूं पढ़ाई वढ़ाई तो तेरी बहुत हो चुकी ।
घर में काम सीख!!! नौकरी करके दो दो जगह क्यों खटना।
देख !! तेरी मां को कितने आराम से चार लोगो का खाना बनाकर,बढ़िया दोपहर भर सोती है ।
ममता-: तभी साल मे दो साड़ी ,और दो रोटी मिलती है, आपको और माँ को ।
आप लोग को थोड़ी सी भी, आर्थिक स्वतन्त्रता है ???
मन का करने से पहले आप दादाजी से कितना गिड़गिड़ाती हो, माँ कितनी मिन्नते करती है कुछ खरीदने से पहले...
आप चाहती हो, मैं भी एसी ही तरसते रहूँ।
दादी-: (आख्ँ के आँसू पोछते हुए) ...नही... मेरी बिटिया !!!!बिल्कुल.... नही. तू खूब मन लगा कर पढ़ ।अफसर बन। अपनी जिन्दगी जी... अपनी शर्तों पर ...मन भर के जी।
और ....सुन मेरे लिये वो ,फूल वाले कान के टाप्स बनवा देना,...मेरी अफसर बिटिया।
तीनो लिपट कर रोते-रोते, हंसने लगे।
पल्लवी वर्मा
स्वरचित
पल्लवी वर्मा
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