आज के बदलते माहौल में हम शायद खुश रहना भुल सा गयें हैं। आज बच्चों बाला मुस्कान बहुत ही कम लोगों के चेहरे पर दिखाई देती है। ऐसा अब क्या हो गया है, जिसके कारण एक मनुष्य, मनुष्य न रहकर मशीन बनतें जा रहा है। एक निर्जीव रोबोट जैसा, वह व्यवहार करते जा रहा है। क्या कभी आपने या हमने इस पहलू पर विचार किया है?
शायद आपका जवाब होगा नहीं। क्योंकि इस आपाधापी की जिंदगी जिने के चक्कर में कभी हमने वास्तविक जीवन के बारे में सोचा हीं नहीं। कभी ये सोचा हीं नहीं की जो मशीनी जिन्दगी जी रहे हैं हम , क्या हम मनु पुत्रों का सृजन इसी लिए प्रकृति ने की थी, या इसके पीछे कुछ और ही मकसद था।
मेरा मानना है - हॉ , इसके पीछे कुछ और ही उद्देश्य था प्रकृति का।
हम मानव इस पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी हैं, क्योंकि हमारे पास विवेक है और आज विवेक तथा ज्ञान की शक्ति पर कहॉ से कहॉ पहुंच गयें। लेकिन जिस ज्ञान के बदौलत मनुष्य वो काल्पनिक दुनिया में जी रहा, जिस काल्पनिक दुनिया को कभी हमारे पुर्वज कल्पना भी नहीं कियें थें।
आज मनुष्य का संपूर्ण जीवन एक मिलावटी जिन्दगी की तरह बन कर रह गई है, जहॉ न मांसिक सुख है और नहीं शारीरिक सुख। हम इतना खो गयें हैं पैसा कमाने के चक्कर में कि न स्वयं पर ध्यान दे रहे हैं और नहीं अपने परिवार पर। स्वयं पर ध्यान न देने के कारण, हमारा शरीर भी जल्द ही जबाब देने लगा रहा है। थकान से लेकर कई शारीरिक परेशानीयां हम मोल ले रहे हैं। उसके साथ - साथ काम का अधिक बोझ हमें तनाव जैसा बिमारी को हमेशा के लिए हमारे दिमाग में बीजारोपण कर दे रहा है।
आये कुछ कोशिश करें अपनो के साथ, अपनो के लिए, खुशी पुर्वक जिन्दगी जिने का, जिसमें कोई मिलावट न हो। एक ऐसी मुस्कान हो हम सबको चेहरे पर, जिसमें छोटा बच्चों की तरह कोमलता छूपा हो।
आलेख :निरंजन कुमार
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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहतरीन आलेख
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