बंधा हुआ हूँ

a simple poem बंधा हुआ हूँ

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night_thinker
night_thinker 19 Oct, 2022 | 0 mins read

बंधा हुआ हूँ,

खुद के डरो की जंजीरो से |

चाहता हूँ कोई,

छुड़ा ले मुझे इन जंजीरो से |

जानता हूँ मुझे ही छुड़ाना हे,

खुद को खुद ही से |

फिर भी हूँ कब से,

जकड़ा हुआ हूँ इन जंजीरो में |

जानते हुए भी,

आज़ाद नहीं कर पा रहा हूं खुद को खुद ही से |

बंधा हुआ हूँ,

खुद के डरो की जंजीरो से |



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