सोच ने ही डाला था मुसीबत में,
सोच ने ही निकाला था मुसीबत से |
क्या करूँ इस सोच का,
यही सोच सोच कर पड़ गया हु मुसीबत में |
सोच ही जो हमे बढ़ती ही उम्र जीवन में,
और कभी कभी हम रुक जाते हैं इन्ही सोच की जंजीरो से |
रखो अपनी सोच को ऐसी की,
जो ना डाले तुम्हें मुसिबत में |
और अगर फस जाओ मुसिबत तो,
निकाल सके तुम्हें मुसिबत से |
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