Nidhi Sehgal
05 Jan, 2025
अनंत
तुम अनंत के वो शून्य हो,जिसे व्यक्त करने के लिए
मुझे अनेक आकाश गंगाओं को पार कर,
स्वयं को विस्तार कर,
समर्पण की सभी सीमाओं को मिटाते हुए,
भावनाओं के सभी पुष्प लुटाते हुए,
प्रेम की चरम सीमा को भी लांघ कर,
शब्दों से नहीं, जीवन के मोतियों से लिखना होगा,
किंतु मैं तब भी आश्वस्त नहीं,तुम्हें व्यक्त कर पाऊँ,
तुम रहस्य हो, उन्मुक्त हो,गहनता की पराकाष्ठा हो,
मैं स्वयं में तुम्हें अनुभव कर सकती हूँ,
किंतु अभिव्यक्ति के लिए तुम्हारा अस्तित्व संकुचित हो, मुझे भ्रमित करता है।
-निधि सहगल
Paperwiff
by nidhisehgal
05 Jan, 2025
#अनंत
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