बाबुल के आंगन की

बेटियां बाबुल के घर को छोड़कर दूसरे के घर चली जाती है

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Neha Srivastava
Neha Srivastava 29 May, 2020 | 0 mins read

सोनचिरैयाबाबुल के घर की सोनचिरैया कहलाती है,

घर आंगन रौनक कर ,दूसरे आंगन को महकाती है

बचपन की यादों को मन में सजती है

संगी, साथी की यादों को पिरोती चली जाती है

बेटियां बाबुल के घर की सोन चिरैया कहलाती है।

मां बाबा के लिए कभी त्याग कर जाती है,

तो कभी अपनी नाह के घर सजाती है।

बेटियां, बाबुल के आंगन की सोनचिरैया कहलाती है।

अपनी आंचल में सारे गमों को छुपाती है

अपनी मन के अंधियारों को हराकर

घर उजियारा कर जाती है।

बेटियां, बाबुल के आंगन की सोन चिरैया कहलाती है

मां ,बनकर बच्चों पर प्यार लूटती है

किसी के बिन बोले ही सब बातें जान जाती है

घर परिवार के सारे नखरे हंसी खुशी उठाती है

बेटियां बाबुल के आंगन की सोनचिरैया कहलाती है

## नेहा श्रीवास्तव

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Neha Srivastava

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