संटू बंटू है दो भाई ,
शैतानी से भरी पिटारी
खेलत- खेलत संग खिलौने
कोउ न चाहत साथी संगी
कबहू -कबहुँ लड़ते लड़ाई
घर की जैसे शामत आयी
आपसे में खेलत दोउ भाई,
अपनी दुनिया जीते संगी
दोऊ के शौक निराले
एक पढ़ाईयल और मिठाईयल
दूसर खेलवया और नमकिनल
दोऊ ऐसे लागत संगी
जैसे लागत लव कुश संगी
ऐसा कबहूँ न होए भाई
खेलते समय होइहे लड़ाई
अपसे मे बतियाते बतिया
कोऊ ना समझ सके
दोऊ हैं एक दुसरे के साथी
कोऊ उनको ना समझ सके।।
दोऊ एक दुसरे को सिखलाते,
बचपन के अनमोल पल बतियाते,
समझे एक दूसरे को दोऊ
कौउ न चाहत साथी संगी।।
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