आज फिर उन लम्हों की याद आई ,
जो वक्त बीत गया उन पलों की याद आई
मन में जो दर्द है छलक ही जाएंगे
गैरों में क्या दम अपनों की एसितम का
अपनों ने ही तोड़ा मन गैरों में क्या दम
आज फिर उन लम्हों की याद आई
मन का दर्द आंखें ही बयां करती है
और किस में यह ताकत हुआ करती है
रुक जा रे मुसाफिर घर ने बताया
मन बावला कहां रूक पाया
अब वक्त पर छोड़ दिया अपना फैसला
समय ही समय की कद्र किया करते हैं
तूने तो छोड़ दिया ए मुसाफिर
उस नजाकत के वक्त पर
तुझे मेरा दर्द क्यों नहीं दिखता हमसफर
बिन बोले कुछ तो समझा करो
वक्त नहीं लगा हमें समझने में तुझे
तू कहां बैठा है समय के अंधेरे में
हर वक्त तेरा नाम लेकर जी रहे
तू किस अंधेरे में बैठा है
मन को तो बहुत समझाया रे
पर आंखों को कैसे समझाएं यह बता
मन को समझाने का नुस्खा तो सीख लिया
पर आंखों को कैसे समझाएं हम
सुना है कहते हैं वक्त सब कुछ सिखा देता है
पर हमारी आंखें तो सब कुछ बयां करती हैं
काश आंखों को भी तसल्ली का नुस्खा कोई बता
जो कह नहीं सकते वो दर्द काश कोई समझे
ऐसे वक्त पर कोई तो दिखे
आंखों के दर्द को समझना सीखा हमने
बरसात के बाद खेत हरे-भरे देखा हमने
ऐसे ही वक्त निकल जाएगा ए मन
थोड़ा खुशी और गम के साथ निकल जाएगा
मन में एक बात ठानी है
पूरा हो जाएगा तो तुझे बतानी है
मुझे नहीं पता आज कुछ ऐसा कर जाएंगे
साथ एक सपना भी निपटाते चले जाएंगे।
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