हमारे मौहल्ले में एक सज्जन रहते हैं जिनका नाम सुन्दरलाल है । एक बार किसी पण्डित ने उनका हाथ देखकर बताया कि ' स ' अक्षर तुम्हारे लिए अशुभ है । तुम्हारी मौत चाहे जैसे भी हो पर ' स ' के कारण होगी । अब वे “ स ' से सावधान रहने का भरसक प्रयास करने लगे । अपने सभी दोस्त संजय , सुशील , सचिन , शिवकुमार तथा सतीश आदि से तौबा कर ली । यहाँ तक कि खाने - पीने की चीजें जिनका नाम " स ; से शुरू होता है या जैसे - सेब , सन्तरा , समोसा , शर्बत आदि का भी त्याग कर दिया वह साईकिल पर जाते हुए भी घबराने लगा , क्या पता साइकिल से ही मौत हो जाए । एक बार तनाब के लिए मेहमान रिश्ता लेकर आए तो उन्होने शादी के लिए सहमति दे दी , परन्तु जब उन्होनें बैठकर सोचा कि शादी होगी तो सगाई भी होगी , शहनाई भी बजेगी , ससुराल भी जाना होगा , वहाँ साले - - साली , सास - ससुर भी होंगे , तो सिर पकड़कर बैठ गये । सोचने लगे , अरे बाप रे बाप ! इतने सारे ' स ' एक साथ । शायद ससुराल शब्द में दो ' स ' एक साथ होने के कारण उन्हें अधिक भय लगने लगा । रबैर , जब वह सीट पर बैठने लगे तो हिचके , इसमें भी ' स ' है । उस दिन तो सही सलामत पहुँच गए । एक दिन मुझसे कहने लगे कि सर्दी में ' स ' है , इस कारण इतनी सर्दी पड़ती है कि उादमी ठण्ड से मर जरते हैं । करश ! सर्दी से कहाँ तक बचूँ । सिनेमा या समारोह में जाता नहीं , स्नान करता नहीं , सत्य बोलता नहीं , शीशा भी देखता नहीं , अपने आपको साहब या सर भी नहीं कहवाता , नौकरी में बाबूजी कहलवाता हूँ । मैनें कहा कि जिस संसार में तुम रहते हों वहाँ भी तो दो - दो ' स ' हैं , कहाँ तक बचोगे ? मरने के बाद संसार छोड़ सकते हो । यह बात यदि यमराज को पता लग गयी तो तुम्हें स्वर्ग के ' स ' से बचाने के लिए नर्क में भेज देगा । वह सोच में पड़ गए कि स ' से वंचित रहने का मतलब सुख से वंचित रहना और नर्क में जाना है
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