एक बार एक बच्चा अपने अध्यापक से पूछता है " अध्यापक जीवन में सुख व दुख दानों क्यों आते हैं ? जबकि व्यक्ति सिर्फ सुख को ही स्मरण करना चाहता है न दुख का चाहता , न ही उसे याद करना चाहता है । " अध्यापक ने कहा - मैं तुम्हें अभी उत्तर देता हूँ । वह सभी बच्चों को एक नाव में ले गए और एक चप्पू से नाव को आगे बढाने की कोशिश की परन्तु वह आगे बढ़ने की जगह वहाँ गोल - गोल घूमने लगी । तभी उस छात्र ने कहा – ' अध्यापक अगर आप उसे दोनो चप्पू से नही चलाएगें तो यह आगे नहीं बढेगी । " अध्यापक ने कहा कि तुमने अपने प्रश्न का उत्तर स्वंय दे दिया । अगर ऐसे ही जीवन से सिर्फ सुख ही होगा जीवन में व्यक्ति आगे बढ़ने कर कोशिश नहीं करेगा । जैसे कि अगर तुम्हारे परीक्षा में अच्छे नम्बर आए तो तुम सोचोगे अरे ! मुझे पढ़ने की क्या जरूरत मेरे तो हमेशा अच्छे नम्बर आते हैं और अगर बेकार नम्बर आए तो सोचोगे कि तुम्हारे कम नम्बर कैसे आए फिर और मेहनत करके अगली बार अच्छे नंबर लाओगे । इसलिए जीवन मे सुख व दुख दोनों का होना आवश्यक है । क्योंकि जीवन भी एक नाव की तरह है अगर सुख व दुख दोनों के चप्पू उसमें न हो तो वह एक जगह ही घूमती रह जाती है या फिर डब जाती है ।
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