मैं मुस्कुराता हुं

मैं मुस्कुराता हुं ( Poetry/ shayari)

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Narender Rana ( Niru )
Narender Rana ( Niru ) 01 Aug, 2022 | 1 min read
Poem


कभी तस्वीर तेरी देख

मैं मुस्कुराता हूं ।

मंद मंद ..

मैं मुस्कुराता हूं।



मैं आंसु हूं ,

आंख बन्द करके आता हुं ।

जब आता हुं 

पोंछ दिया जाता हुं ।

मैं रोते रोते भीग जाता हुं 

तक़दीर अपनी देख ,

मैं मुस्कुराता हुं ।

मंद मंद..

मैं मुस्कुराता हुं ।


अच्छा भी जानता हुं ,

बुरा भी जान जाता हुं ।

सब जान के अनजान बन जाता हुं 

मैं मुस्कुराता हुं ,

लकीर अपनी देख ।

मंद मंद ..

मैं मुस्कुराता हुं ।


कभी चौंक जाता हुं 

यानी रातों को "उठ " जाता हुं ।

" चिंता का विषय " हुं मैं एक ,

कभी इन्सान तो कभी जानवर बन जाता हुं ।

समाज देखूं अगर तो सहम जाता हुं ।

खुद को देखूं तो समझ.. जाता हुं ।

बाहर कुछ भी नहीं  

अच्छा बुरा...सब अंदर है ,

सोच बेचारी अपनी देख 

मैं मुस्कुराता हुं ।

मंद मंद ..

मैं मुस्कुराता हुं ।


कई बातें दरकिनार करता हुं ।

कई रातें बेकार करता हुं ।

मेरी चुप्पी का हिसाब नहीं है मेरे पास ,

तो कभी बातें भी बेहिसाब करता हुं ।

इशारा कर कोई तो समझ जाता हूं ।

हर किसी को नहीं समझ पाता हूं ।

दुनिया के लिए वक्त बहुत है मेरे पास ,

खुद के लिए एक पल में सिमट जाता हुं ।

परेशानी अपनी देख ,

मैं मुस्कुराता हुं

मंद मंद ..

मैं मुस्कुराता हुं ।











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Narender Rana ( Niru )

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