आज रात भर
बरसे बदरा
प्यासी धरती भिगोयी
सावन की जो लगी झड़ी
फिर मेरी अखियां रोईं
तुम बिन कैसे अच्छी लागे
सावन की यह बारिश
परदेस में तुम सोए हो
मैं रात भर जागी
वर्षा जी को भाती थी
जब मैं थी बाबुल के अंगना
पिया के घर में सूनी लागे
भीगी भीगी रैना
सखियां सब करें ठिठोली
अंबुवा तरे बतियावें
अपने-अपने सजना के वो
किस्से खूब सुनावें
तुम तो बसे परदेस में
और हो गए हो परदेसी
मैं ही बिरहन बनी फिरूं
तुम बने ना मेरे जोगी
सास और ननदी समझ ना पावे
मेरे दिल की बात
कहें दुल्हनिया सज कर बैठो
कैसे बतलाऊं हाल
तुम बिन ना भाए यह चूड़ी
ना भाए ये कंगना
और महावर भी ना भावे
ना भावे घर अंगना
आ जाओ अब अर्जी देकर
या सावन से कह दो
मेरे बिन न बरसो ऐसे
हम आए तब बरसो.
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