कुछ साल पहले मैं अपने दोनों बच्चों और पति के साथ कार से अपने गांव जा रही थी . रास्ते में हमें आम का बहुत बड़ा बगीचा मिला . पेड़ों पर आम के गुच्छे लटक रहे थे .कुछ आम तो इतना नीचे लटक रहे थे कि बस हाथ बढ़ाओ तोड़ लो. आम को देखकर बच्चे मचल उठे .हमने कार रोककर कुछ आम तोड़े और खाने लगे. हम इस बात से अनजान थे कि बगीचे का मालिक दूर बैठा हमें देख रहा था.
हम आम की गुठली चूसने में मस्त थे कि तब तक वह हमारे करीब आ गये और बड़े प्रेम से बोले "आइए आराम से बैठकर आम खाइए और उन्होंने हमारे लिए चटाई बिछा दी .उन्होंने हमें और आम खाने के लिए दिये और साथ ही करीब 2 किलो आम साथ में ले जाने के लिए भी दिये.उन्होंने बताया कि वे दोपहर में यहां बैठकर आम की रखवाली करते हैं .वह अपने साथ अपना खाना और पानी लेकर आते हैं और यहाँ पेड़ के नीचे दोपहर बिताते हैं .
उन्होंने हमसे अपने साथ लाई हुई सत्तू की कचौरी भी खाने का आग्रह किया.हम लोग उनके प्रेम को देखकर दंग रह गए और सत्तू की कचौरी देखकर सारी पढ़ाई लिखाई ,हाइजीन वाइजीन धरी की धरी रह गई .
हमें इस तरह प्रेम से खिलाते वक्त उनके चेहरे पर असीम संतोष की झलक दिख रही थी और मेरी आंखों में उनकी अन्नदाता की छवि साक्षात बस गई थी .
अब समझ में आ गया था कि किसान को अन्नदाता क्यों कहते हैं.
हमने उनके आम चुरा कर खाए तब भी उन्होंने हमारे साथ इतना प्रेम का व्यवहार किया जो बड़े-बड़े मॉल और बड़े व्यापारी किसानों से उनका माल सस्ते में लेकर महंगा बेचते हैं जरा उनकी दुकान से कभी कोई चीज फ्री में उठाकर देख लीजिए आपकी ऐसी की तैसी ना कर दे तो कहना.
आसान नहीं है अन्नदाता होना. त्याग की मूरत बनना पड़ता है ,कड़ी धूप में खुद को तपाना पड़ता है. बहुत कठिन परिश्रम के बाद हमारी थाली में रोटी आती है.
उस अन्नदाता का एहसान मानना हमारा फर्ज है और जो हमारे लिए इतना सोचता है, उसके लिए सोचना हमारी जिम्मेदारी है.
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुंदर प्रसंग
बिल्कुल सही कहा आपने
Thank you so much Sonu and Varsha Ji❤
👌👌👌
Thank you so much😊
Please Login or Create a free account to comment.