परोपकार

जो व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है कोई उसका नाम लेना भी पसंद नहीं करता

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Namrata Pandey
Namrata Pandey 28 Jul, 2020 | 1 min read

बहुत पुरानी बात है एक नगर में एक सेठ रहता था | वह बहुत ही धनवान था | वह अपनी प्रसिद्धि और वाहवाही के लिए काफी धन खर्च करता था| उसकी एक ही इच्छा रहती थी कि नगर के लोग उसे सबसे अधिक धनवान समझें और उसकी खूब इज्जत व सम्मान करें |


एक बार उसने सोचा यदि नगर के चौराहे पर उसकी मूर्ति लग जाए तो लोगों तक उसकी प्रसिद्धि बहुत जल्द पहुंच जाएगी, ऐसा सोच उसने एक मूर्तिकार को बुलाया जो मिट्टी की मूर्तियां बनाता था|


 सेठ जी ने कहा कि मेरी ऐसी मूर्ति बनाओ जो बिल्कुल जीवंत हो और उसे देखकर ऐसा लगे कि बस बोल उठेगी | मूर्तिकार ने कहा,"ठीक है आप पच्चीस किलो बढ़िया मिट्टी मंगवा दीजिये, मैं आपकी बहुत सुंदर मूर्ति बना दूंगा | सेठ ने मूर्तिकार को मिट्टी मंगाकर दे दी |


 मूर्तिकार ने अपना कार्य शुरू किया | पांच दिन बाद मूर्ति बनकर तैयार हो गई | मूर्ति ऐसी कि देखकर लगता था मानो सेठ जी साक्षात खड़े हों | मूर्ति बनाने के बाद कुछ मिट्टी बच गई तो मूर्तिकार ने सोचा कि इसका क्या करूं| 


गर्मी के दिन थे तो उसने सोचा यदि मैं मिट्टी का एक मटका बनाकर चौराहे पर रख दूं तो राहगीरों को पानी के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा और वे अपनी प्यास बुझा सकेंगे, ऐसा सोचकर मूर्तिकार ने एक मटका तैयार किया और उसे चौराहे पर पानी भरकर रख दिया |


सेठ जी ने जब अपनी मूर्ति देखी तो बड़े खुश हुए और उन्होंने मूर्तिकार को मुंह मांगी रकम दी|

मूर्तिकार खुश होकर चला गया|


 दूसरे दिन लोगों ने चौराहे पर सेठ जी की मूर्ति लगी हुई देखी तो उन्होंने मूर्तिकार की कला की सराहना की , पर लोग वह घडा़ देखकर बड़े खुश हुए और मूर्तिकार को लाखों दुआएँ दी | लोगों ने उस मटके से अपनी प्यास बुझाई और मटका दोबारा भर कर रख दिया ताकि आने वाले अन्य राहगीर अपनी प्यास बुझा सके | सेठ जी यह देखकर निराश हुए कि देखकर निराश हुए कि उनकी तो किसी ने तारीफ ही नहीं की |


अगले दिन लोगों ने सोचा कि मटका धूप में रखा हुआ है इसका पानी गर्म हो जाएगा, तो उन्होने उसको उठा का छाया में रख दिया| सेठ जी की मूर्ति धूप में तपती रही |  


अगले दिन लोगों ने देखा कि पक्षी आकर मटके का पानी गन्दा कर रहे हैं तो लोगों ने मटके को अच्छी तरह से ढक दिया | सेठ जी की मूर्ति के ऊपर पक्षी गंदगी करते रहे |


सेठ जी ने देखा कि मेरी मूर्ति से ज्यादा इज्जत तो मूर्तिकार और उसके मटके की हो रही है, तब उन्हें यह बात समझ में आई कि, जो व्यक्ति परोपकार करता है, इज्जत और सम्मान भी उसी को प्राप्त होता है|


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