सागर और मैं

एक स्त्री और सागर में कई समानताएं होती हैं

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Namrata Pandey
Namrata Pandey 02 Sep, 2020 | 1 min read
वूमेन our society #thepoetryblast

सागर किनारे.....

खड़ी होकर सोचती हूं

अक्सर

 एक दिन थाह पा लूंगी 

इसकी गहराई की

क्या यह मुझसे भी ज्यादा

 गहरा है ....... 

और समेटे है 

उतने ही राज

जो मैं समेटती आयी हूँ 

जीवन भर

 गृह शांति की खातिर

 और उतना ही विस्तृत है

 जैसे मैं......

जो हर जिम्मेदारी निभाती आयी हूँ

सहनशीलता भी मैंने 

बेहिसाब पाई है

और समाज की 

इस अपेक्षा पर भी

खरी उतरी हूँ

कि शांत हो जाऊँ

सागर की तरह

भले ही भीतर

कितनी ही उथल पुथल हो

डर लगता है कहीं....... 

ज्वार के जैसे 

फट ही न जाऊँ

और सच में ...... 

सागर ही न बन जाऊँ.


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