पिताजी ने शहर में नया मकान बनवाया हैं , सुनते ही रश्मि के पांव धरती पर नहीं पड़ रहे। तुरंत ही अपनी देवरानी को उसने खुशखबरी दी।
कल ही घर का गृह प्रवेश होना है। कल माँ, पिताजी, भाई और दोनों छोटी बहनें सुबह ही नए घर में प्रवेश करेंगे। सुबह साढ़े सात बजे का शुभ मुहूर्त है।
कथा के बाद शाम को प्रीतिभोज का आयोजन है । उसने अपनी देवरानी को बताया। वह सोचने लगी कि वह भी मां और पिताजी के साथ ही सुबह गाड़ी से उनके साथ निकल जाएगी और पूजा में मां का हाथ बंटाएगी। शादी के पहले वह ही तो सब कुछ संभालती थी, सोच सोचकर वह फूली नहीं समा रही है। बच्चों के स्कूल से आते ही उसने उन्हें भी यह खुशखबरी सुनायी कि कल वो लोग सुबह नानी के यहां जा रहे हैं।
सोचते-सोचते पुरानी यादों में खो गई। उसका बचपन तो गांव में ही बीता। जब छोटी थी तो घर में आर्थिक तंगी थी । जिसके कारण उसे छोटी छोटी चीजों के लिए अपना मन मारना पड़ता था। चारों भाई बहनों में सबसे बड़ी थी । उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए वह अपनी आवश्यकताओं की तिलांजलि दे दिया करती थी। मां भी कहती कि आठ साल तक तो तू अकेले ही रही और तेरी हर इच्छा पूरी हुई है, पर अब जब तेरी दो छोटी बहनें और एक भाई और आ गया है तो तुझे उनके बारे में भी सोचना चाहिए ।
इन सब बातों का असर हुआ कि वह वक्त के पहले ही बड़ी हो गई और उसने मन मारना सीख लिया। बीए करते ही उसकी शादी हो गई, क्योंकि पिताजी रिटायरमेंट से पहले ही उसकी शादी करना चाहते थे ।वह अभी और पढ़ना चाहती थी पर घर के हालात देख उसने शादी के लिए हामी भर दी। जल्दी ही वह ससुराल और वहां की जिम्मेदारियों में डूब गई।
भाई पढ़ने में होनहार था और आज बैंक में पीओ के पद पर कार्यरत है। भाई के प्रयासों से ही आज शहर में उनका अपना मकान होने जा रहा है ।बहनें भी स्नातक के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। अभी तक तो सब गांव में ही रहते थे। उसकी शादी भी पडो़सी गांव में ही हो गई थी ।पति कृषक है। कुल मिलाकर गांव के सादा जीवन में उसका गुजर बसर हो रहा है। कल वह शहर में जाने के नाम से ही उत्साहित है। बच्चे भी बहुत खुश हैं मामा के घर जाने के लिए ।
अगले दिन सुबह-सुबह उसने मां को फोन किया, यह बताने के लिए कि वह भी उन लोग के साथ ही शहर चलेगी ,पर पता चला कि वह लोग तो भैया की कार से निकल चुके है।
उसे धक्का पहुंचा, अरे माँ ने एक बार मुझसे पूछा तक नहीं। चलो कोई बात नहीं मैं खुद ही बस से पहुंच जाऊंगी और वह निकल पड़ी पति तथा ससुराल वालों को शाम को घर आने का न्योता दे कर। दस बजे तक वह घर पहुंच गयी। मां और बहनें पूजन की तैयारी में लगे हुए थे।
पूरा घर फूलों से सजाया जा रहा था। वह भी खुश होकर अपना घर देख रही थी । हां, आखिर यह उसका मायका है, उसका अपना घर ही तो है । खुशी-खुशी सारे कार्यक्रम निपटने के बाद शाम के प्रीतिभोज की तैयारी होने लगी ।बहने तैयार होने के लिए ब्यूटी पार्लर निकल गई थी। उसने भी अपनी शादी वाली बनारसी साड़ी निकाली पहनने के लिए, मां ने कितनी मुश्किल से यह बनारसी साड़ी जुटाई थी उसके लिए ।जब वह तैयार हो गई तो देखा मां बिल्कुल लेटेस्ट फैशन की साड़ी पहने हुए थी। मां बहुत सुंदर लग रही थी अब उसे अपनी पुरानी साड़ी मां के आगे फीकी लगने लगी ,पर चलो कोई बात नहीं ,मां के जीवन में भी तो पहली बार खुशी आई है, उसने सोचा ।
कुछ ही देर में बहने भी महंगे गाउन में तैयार होकर आ गई। उसने तो अपने जीवन में कभी महंगे कपड़े नहीं पहने ।
शाम को ससुराल वाले आएंगे तो उसके मायके की शोभा देखेंगे, वह सोचने लगी । कुछ ही देर में भैया के बॉस आ गए भैया ने मम्मी पापा और बहनों को अपने बॉस से मिलवाया, "सर ,यह मेरे मम्मी पापा और यह मेरी दोनों छोटी बहने है"
रश्मि की आंखें चमक उठी कि अब भैया उसे भी अपने बॉस से मिलवाएंगे ,पर नहीं भैया ने तो उसका नाम तक नहीं लिया। क्या नए फैशन के भाई-बहन अपने पुराने फैशन की दीदी को भूल गए। उसकी आंखों के कोरे भीग गये, जिन्हें पोछकर वह अपनी ससुराल वालों के स्वागत में लग गयी। अपनी देवरानी को उसने अपना नया घर दिखाया ।हाँ, अपना नया घर, जिसके किसी भी हिस्से में वह नहीं थी।
नम्रता पांडेय
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