यूँ ही चलते चलते नयी राह पर हम
न, जाने कहां से कहां आ गए हैं........
है ये दौड़ कैसी, ये चाहत है किसकी,
वो साथी पुराने कहां छोड़ आये।
अबूझे से चेहरे,अजब सी निगाहें
किसी का , किसी से भी रिश्ता नही......
दे आवाज किसको किसे हम पुकारे ,
किसी को कोई जानता ही नही।
खिलखिलाए हुए एक अरसा हुआ है,
कई रोज से मुस्कुराए नहीं.....
रस्ता बता दो मुझे वापसी का ,
इस दिल को होगी अब राहत वहीं।
वो छोटा सा घर हो,वो ममता का आंचल,
वो यारों की टोली भी होगी कहीं.....
लौटा दो मुझको ये मेरी धरोहर,
बस दूसरी कोई चाहत नही।
नम्रता पांडेय
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
उम्दा रचना
Thank you so much😊
Very nice
Thank you so much 🙏
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