प्रिया ने मां को बहुत समझाया कि अब यह उनके आराम करने के दिन है परंतु 75 साल की मां अभी भी जिद पर अड़ी हुई थी कि बैठे-बैठे बोर हो जाती हैं ।अतः घर के छोटे-मोटे कामों में प्रिया की मदद कर देंगी जैसे कि सब्जी काटना,
दाल चावल साफ करना ,कपड़ों में प्रेस करना, मटर छीलना वगैरह वगैरह ना जाने कितने ही अनगिनत काम मां स्वयं करना चाहती थी। प्रिया सोचने लगी मां जीवन भर गांव में रही। उन्होंने पिता जी के देहांत के बाद आशीष और उनके बड़े भाई को पढ़ाया लिखाया। आशीष ने प्रिया को बताया था कि मां ने जीवनभर कैसे संघर्ष किया। आज आशीष और बड़े भैया अच्छे ओहदे पर हैं पर मां अपनी बाकी की जिंदगी भी गांव में ही काटना चाहती हैं ।बड़ी मुश्किल से प्रिया ने उन्हें अपने साथ रहने पर राजी किया है ।आशीष और प्रिया उन्हें गांव से गाजियाबाद अपने घर ले आए हैं और मां को आराम से रहने की हिदायत दी है, पर मां है कि कुछ ना कुछ काम करती ही रहती हैं ।प्रिया ने सोचा मां का जीवन बिल्कुल एक नदी की तरह है जो निरंतर बहती रहती है ।अपने मार्ग में वह पेड़ पौधों को जीवन देती है ।सींचती है है ,उन्हें पोषित करती है ,हर जीव को जीवन दान देती है ।दुर्गम रास्तों में भी निरंतर निर्बाध बहती रहती है और अपना रास्ता स्वयं बनाती है और जीवन के अंतिम पड़ाव में भी सक्रिय रहकर सब का भला करती है ।इसी तरह स्त्री का स्वभाव भी ऐसा ही है कि जो जीवन के अंतिम पड़ाव में भी हार नहीं मानती और सबका भला करना चाहती है।
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