आजकल कुछ न कुछ
लिखने लगी हूँ
यह जानने के लिए
क्या सोचती हूँ मैं आजकल
चीजों को देखने का
नजरिया बदल गया है
सोच भी बदल सी
गयी है आजकल
रंगों को शब्दों से सजाती हूँ
शब्दों से इंद्रधनुष रचती हूँ
अनकहा कह देती हूँ
आंखों की भाषा
पढ़ लेती हूँ आजकल
बिन पंखों के उड़ान भरती हूँ
सागर की गहराई तक उतरती हूँ
पंछी का कलरव सुनकर
तारों संग बातें भी
करती हूँ आजकल
चांद अब आंगन में
रोज उतरता है
मेरी सुन लेता है
अपनी कह जाता है आजकल
किस्से अब मेरे वो
पन्नो में सिमटे से
किताबों की शक्ल में
सजते हैं आजकल
ख्वाब किस तरह से
हकीकत में बदलते हैं
खुशियों को दामन में
यूँ पाया है आजकल
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