Namita Gupta
Namita Gupta 26 Aug, 2024
कविता सदाबहार है
जहां भी हम टूटते हैं, बिखरते हैं ,,या दरकते हैं ,, कविता सहसा उग आती है उन तमाम दरारों में पीपल सी,, ढांप लेती है हमें सावन की हरीतिमा की तरह , वह सदाबहार है किसी मौसम की प्रतीक्षा नहीं करती , सूखती हुई धरती को हरियाली सौंप देने का यह रास्ता भी नायाब रहा,,है न !!

Paperwiff

by namitagupta

26 Aug, 2024

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