Namita Gupta
Namita Gupta 17 Aug, 2024
तभी तो बची रह जाती है दुनिया थोड़ी सी और
प्रेम है तभी तो बची हुई है नमी भी.. तभी तो जन्म ले रही हैं बारिशें.. तभी तो और अधिक चटकीले हो रहें हैं इंद्रधनुष.. तभी तो कोई गिनने लगा है तारों को रातों में.. तभी तो भाती है मुंडेर पर बैठी हुई पीली धूप.. तभी तो होती हैं लंबी बातें उस चांद से भी.. तभी तो बार बार लौट आता है पतझड़ भी बसंत के लिए.. तभी तो चहक रही हैं चिड़ियां आंगन में.. तभी तो लिख रहा कोई प्रेम कविता.. तभी तो बची रह जाती है हर बार ये दुनिया थोड़ी सी और..

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by namitagupta

17 Aug, 2024

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