कल ही मैं मंटो देख के आयी !
मैंने मंटो को कभी जाना नहीं था , उनकी कहानियों को कभी पढ़ा नहीं था , उनके बारे में व उनकी दो कहानियां "ठंडा गोश्त" ,"खोल दो", पढी । बहुत संजीदा व दिल को झकझोर देने वाली कहानियां ।
मुझे "सआदत हसन मंटो" को देखने की इच्छा और तीव्र हो गई।वाकई एक कलाकार की मनोस्थिति कोई भी अगला व्यक्ति महसूस नहीं कर सकता। एक बिंदास अंदाज एवं अपनी शर्तों पर जीने वाला व्यक्ति। मगर अपनी शर्तों पर जीने को मिलता कहां है । मैं तो आजाद भारत में पैदा हुईं और आजाद भारत में रह रही हूं तो शायद मैं उस समय के लोगों की मनोस्थिति समझ नहीं सकती , पर जितना भी पढ़ा है तो यही समझा है कि बहुत से लोगों ने बंटवारे का विरोध किया था एवं बंटवारे का दुःख झेला है, ऐसे महसूस किया कि जैसे दो भाइयों को अलग कर दिया गया हो।
मंटो को मुंबई से बहुत प्यार था और वे मुंबई छोड़ के जाना नहीं चाहते थे ये दुःख उनको आजीवन सालता रहा। ये उनके अपने आखिरी दिनों में लिखे गए खतों से पता चला है। उनके इस दुःख को मैं आज महसूस कर रही हूं।
उनकी कहानियों में ऐसे दुखों को दर्शाया है जिनको लोग देख कर भी अनदेखा करते थे और उसको अश्लीलता करार देते थे। मंटो को पाकिस्तान में वो प्यार और इज्जत नहीं मिली जिसके वे हकदार थे।एक बात जो मुझे महसूस हुई कि बंटवारे में हिन्दू मुस्लिम दोनों ही कौम बहुत दुखी हुए, अनेकता में एकता कहे जाने वाले हमारे भारत देश की नींव ही हिला दी,अब दोष किसका दे ! उस समय के राजनैतिक दलों को या उन आम लोगों को । जो भी है पर ये बंटवारे अभी तक थमे नहीं है होते ही जा रहें हैं, लोगों को छलनी किये जा रहे हैं।
सच में मंटो साहब जिस आजाद भारत का ख्वाब आपने देखा था , वो ख्वाब आप के ख़्वाबों में ही खो गया । आप जैसे कुछ महान् लोगों के साथ चला गया।
मैं बस इतना कहना चाहतीं हूं " मंटो जी , आप एक महान लेखक थे , आप जहां भी हो खुश हो ।
अंत आपके लिखे और बोले गये और मेरे पसंदीदा वाक्यों के साथ
"आपसे मिलके खुशी हुई"
कमाल है , अभी मिले हो , अभी से खुशी हो गई| "
किरदार- "माफ कीजिए, मेरा इरादा आपको नाराज़ करने का नहीं था।"
मंटो- "तुम कर भी नहीं सकते।"
"मैं क्या महसूस करता हूं ये आप क्या कोई भी महसूस नहीं कर सकता"
"सआदत हसन मंटो"🙏
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