आज के इस कोरोना काल ने परोक्ष ही सही मगर हकीकत में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अस्पृश्यता को भी बढ़ावा दिया है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच की दूरी को और भी बढ़ा दिया है। जात-पात सामाजिक स्तर से शुरू होकर धीरे-धीरे मानसिकता में समाहित हो जाता है और भविष्य में आनुवांशिक लक्षण के रूप में विकसित होने लगता है। कोरोना बचाव हेतु सरकारों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग का नियम पारित किया, जिसके चलते परोक्ष रूप में ही सही मानवीय समाज की परिभाषा में बदलाव देखा गया। जिससे कहीं न कहीं जाति-धर्म की रूढ़ियों को बल मिला। परिस्थिति के अनुसार सरकार का सोशल डिस्टेंस का फैसला अत्यन्त आवश्यक है, अब जरूरी यह है कि हम इसे अस्पृश्यता, जातिवाद की रूढ़ियों के रूप में मानसिक न होने दें! अन्यथा हम कभी न कभी इस कोरोना महामारी से उबर ही जाएंगे, पर इस जाति-धर्म जैसी घातक बीमारी से उबरना शायद बेहद ही मुश्किल होगा।
मिथलेश सिंह 'मिलिंद'
मरहट, पवई, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
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