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Hem Lata Srivastava
Hem Lata Srivastava 04 Jun, 2023
दरख्त रेगिस्तान का
वो दरख्त था एक रेगिस्तान का, रेतीली हवाओं के बीच खड़ा मदमस्त सा, तपिश सूरज की सह कर भी, थपेड़े गर्म हवाओं के सह कर भी मदमस्त था, टहनी को फैलाये हुए वो दरख्त था मदमस्त सा,सूख रही थी टहनियां तेज आंधियों से फिर भी था खडा,रोज एक न जाने कहाँ एक पंक्षी से आकर बैठ उस दरख्त पर गया, सवाल अनेकों उमड़ रहे थे उसकी आँखों में,थोड़ा सा दम भर पूछा जो उसने उस दरख्त से,क्यों यहाँ बियाबान, वीरान सी धरा पर हो अकेले तुम,है कौन यहाँ जिसको है जरूरत तुम्हारी,एक मौन छाया दो पल को उस रेगिस्तान में,तुमको है मेरी जरूरत है ऐ दोस्त मेरे,न होता गर मैं इस सूनसान रेगिस्तान में,उड़ते-उड़ते थक गए थे जब तुम,गर न होता मैं इस धरा पर, क्या इस गर्म, तपती रेत पर सुस्ताते तुम,मत सोच ऐ मेरे दोस्त इस जहाँ में, कोई नही है जिसके वजूद का न हो अस्तित्व यहाँ ,

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by hemlatasrivastava

टाॅपिक- जून की दोपहर