तेज़ बारिश, कड़कती बिजली, खिड़की से बाहर झाँकने पर दूर तक गहरा अंधेरा और धरती को अपनी सफेद चमक से प्रहार करती दामिनी, मानों लता के दिल पर भी प्रहार कर रही थी ।
रवि की नींद खुली और वो लता के कांधों पर हाथ रखते हुए बोले "क्या हुआ लता, आधी रात हो रही है और तुम यहाँ खिड़की के पास खड़ी क्या देख रही हो?" रवि ने खिड़की बंद करते हुए पूछा ।
"सुनिए ! ये खिड़की खुली रहने दीजिए.. प्लीज.." लता ने रवि को खिड़की बंद करने से रोकते हुए कहा ।
"पर..पर..देखो बरसात बहुत तेज़ हो रही है और तेज़ पानी की बौछारें कमरे के भीतर आ रही हैं, फर्श पर पानी ही पानी भर गया है" रवि ने लता को झिंझोड़ते हुए कहा ।
"मैं साफ कर दूँगी, सुबह तक फर्श पर पानी नहीं मिलेगा आपको" लता का गला भर आया था ।
"क्या तुम बरसात में भीगना चाहती हो??तुम औरतों को बरसात में भीगने और उछल-कूद करने में पता नहीं क्या मज़ा आता है?" रवि की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक जोरों से रोशन होती बिजली की कड़कड़ाहट से सारा वातावरण थर्रा गया ।
"लता ! इस गर्जना से डरने की जरूरत नहीं है, मैं हूँ न तुम्हारे पास" रवि ने लता को जोर से बाहों में कसते हुए कहा ।
"सुनिए जी, मुझे इस कड़कती बिजली से बिल्कुल भी डर नहीं लगता और..और रही बात..बरसात में भीगने की तो जब से होश सम्भाला है तब से कभी बरसात का इंतज़ार ही नहीं किया, न बरसात में भीगने का मन किया, न पानी में उछल-कूद करने को ज़ी ललचाया" रवि ने उसको अपने से दूर करते हुए उसके दिल में छुपे राज़ को जानने की कोशिश करी। "मतलब?बरसात तुम्हें पसन्द नहीं??क्यों??"
बरसात तेज़ होती जा रही थी और न जाने ये बरसात की रात क्या राज़ उगलने वाली थी, रवि की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी । दो महीने पहले ही तो लता उसकी अर्धांगिनी बन उसके जीवन में आयी थी । अपनी तरफ से रवि ने उसको कोई कमी न होने दी थी । लता के आने से ही उसको बिल्डिंग का ठेका भी मिल गया था और वह ठेकेदारी में व्यस्त हो गया था ताकि वह अपनी पत्नी को पहाड़ों और समुद्र की सैर करवा सके । आज लता का उतरा चेहरा देख उसको लगा कि शायद वह ही उसको समय नहीं दे पा रहा है या कुछ और वजह है??आज वह लता के दिल की बात जान कर ही रहेगा, चाहे पूरी रात जागना पड़े।
"देखो लता, अगर मुझ पर जरा भी भरोसा करती हो या तुम्हारे दिल में मेरे लिए थोड़ी सी भी मुहब्बत है तो अपने दिल की हर बात कह डालो, मैं सब कुछ सुनने और सहने के लिए तैयार हूँ, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा कि ये बरसात की एक रात तुम्हारे बीते जीवन की हर जलन को ठंडक पहुंचा सके" जैसे ही रवि ने लता की आँखों में आँखे डालकर कहा तो लता ने भरी आँखों को उठाते हुए कहा "आप पर तो मुझे खुद से ज्यादा भरोसा है और आपके सिवा मेरे दिल में कोई आया ही नहीं , पर...पर.." ।
"क्या पर, पर ?? बेझिझक कहो लता" रवि ने लता के सिर पर हाथ रखते हुए कहा ।
"सुनिए जी, जब भी बरसात आती है और ऐसे जोरों से पानी बरसता है तो मेरे पिता के घर की छत, इस बरसात के पानी को घर के भीतर आने से नहीं रोक पाती । रसोई घर में पानी भर जाता है तो उस दिन खाना भी नहीं पकता, हम दोनों भाई-बहन बर्तनों से पानी को बाहर उड़ेलते रहते और माँ फर्श पर पड़े पानी को पोंछती रहती है, पिताजी बरसात के मौसम में अक्सर बीमार हो जाते हैं , शायद चिंता से" लता आँसूं पोंछती , पर बरसात रुक ही नहीं रही थी, न आँखों से और न ही आसमान से ।
"मेरे पिताजी बरसात आने से पहले छत की मरम्मत करवाते हैं परंतु दो ही बारिश के बाद छत टपकने लगती है । जब मैं छोटी थी तो मैं बरसात में बहुत भीगती थी, बरसते पानी मे झूले झूलना बहुत अच्छा लगता था पर जब से होश सम्भाला तो बरसात का सारा आनंद ही खत्म हो गया । पिताजी ने हम दोनों भाई बहन को अच्छी शिक्षा देने में कोई कमी न रखी और मेरी शादी के लिए धन जोड़ते रहे, भाई अभी बाहरवीं कक्षा में आया है और अब उसकी पढ़ाई के लिए धन जोड़ रहे हैं परंतु छत की मरम्मत ही अच्छे से नहीं करवा पाते हैं" सुबकती हुई लता बोली जा रही थी ।
"ओह ! तो इस बात के लिए इतना परेशान थीं तुम?" रवि ने हँसते हुए अपने माथे पर हाथ पटकते हुए कहा।
"आपको ये इतनी सी बात लग रही है परंतु मेरे माता-पिता के लिए ये बहुत बड़ी परेशानी है" लता ने शिकायती अंदाज़ में कहा ।
"जानती हो लता..तुम्हारी विदाई के समय जब घर के अंदर रस्में निभाई जा रही थीं, उस समय मेरी नज़र घर की छत और दीवारों की ओर गई, तब मुझे समझ आ गया था कि नई-नई सफेदी के पीछे बहुत सारी बचत की दरारें हैं । कुछ दिन पहले ही मैंने पापाजी के घर की छत को अच्छे से मरम्मत करवा दिया है, मैं सबके घर बनाने का ठेका लेता हूँ तो क्या अपने घर की दरारों का ध्यान नहीं रखूँगा । अरे पगली..तुम्हारी तरह अब मेरे ऊपर भी तो दोनों घरों को संभालने की जिम्मेदारी है" हँसते हुए रवि ने एक बार फिर लता को छेड़ते हुए कहा कि "मुझे तो लगा था कि कहीं तुम्हारा कोई आशिक़ तो नहीं बिछड़ गया था, ऐसी ही किसी बरसात की एक रात में??" । "धत्त..कैसी बात कर रहे हो।" लता ने रवि के गले लगते हुए धन्यवाद कहा तो रवि बोला "चलो, बरसात में भीग कर बरसात का आनंद लेते हैं " जैसे ही दोनों बाहर आए तो कड़कती बिजली कुछ यूं रोशन हुई मानों दोनों हाथ फैलाये उनका स्वागत कर रही हो ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Loved reading ❤️
Thankyou Sonia ji
बहुत खूब👌👌👌👌आपकी हर रचना पठनीय होती हैं
धन्यवाद संदीप जी🙏
वाह पढ़कर मजा आ गया 😊
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