"आई जी" आटा गूँधती माया ने अपने पति की आवाज़ सुनते ही कहा ।
"नल चलाना जरा" पति रोहित पौधों को पानी दे रहे थे और नल चलाने के लिए पत्नी माया को बुला रहे थे । माया ने झल्लाते हुए नल चला दिया और फिर आटा गूंधने में व्यस्त हो गई । एक बार फिर रोहित ने बुलाया "यार, नल कितना तेज़ छोड़ दिया, थोड़ा हल्का करो" माया ने झुंझुलाते हुए कहा "सुनो, मैं आटा गूंध रही हूँ " रवि ने बड़ी बेफिक्री से कहा "तो थोड़ी देर के लिए रुक जाओ, पहले मैं पौधों को पानी दे दूँ, फिर करना अपना काम" । माया बोली "आटे को बीच में नहीं छोड़ सकती" परंतु रवि भला कहाँ समझने वाला था और गुस्से से पाइप को वहीं छोड़कर बोला "खुद ही कर लिया करो ये काम" । उनकी बेटी 'परी' ये सब देख रही थी, उसने पाइप हाथ में लेते हुए कहा "मम्मी, ये काम मैं तो चुटकी में कर दूँगी, आप अपना काम आराम से करो "। माया ने मुँह बनाते हुए रवि को एक नज़र देखा और अपने काम में व्यस्त हो गयी ।
थोड़ी ही देर में, रवि ने फिर माया को आवाज़ लगाई और माया का फिर वो ही जवाब "आई जी" । माया के आते ही रवि ने गर्मागर्म चाय की फरमाइश कर दी । माया चाय बना लायी, रवि फोन में व्यस्त था और वह चाय पीना ही भूल गया ।
"माया ओ माया" रवि की आवाज़ सुनते ही "आई जी" कहते हुए दौड़ी चली आयी। "सुनो, चाय ठंडी हो गयी, जरा गर्म करके दे दो प्लीज" । माया का मन तो कर रहा था कि वह रवि से कहे "मेरे पास और भी काम हैं, मेरी मदद करने की बजाए उल्टा काम बढ़ा देते हो, मुझे भी थकान होती है" परंतु परी को सामने बैठा देख वह कुछ न बोली । जैसे ही वह जाने लगी तो परी ने जोर से कहा ताकि उसके पापा भी सुन सकें "मम्मी मैं मदद कर दूँ, आप थकती नहीं हो क्या?" । रवि फोन में इतना व्यस्त था कि उसको कुछ सुनाई ही नहीं दिया ।
"पापा चाय" परी ने कप पापा की ओर बढाते हुए कहा । "टेबल पर रख दो बेटा" रवि ने जैसे ही परी से कहा तो वह फट से बोली " नो पापा, आप फिर भूल जाओगे" परन्तु रवि के कानों पर तो जूं भी नहीं रेंगी । परी ने फिर कहा "पापा चाय " रवि को गुस्सा आ गया और वह परी पर बरस पड़ा "दिख नहीं रहा मैं बिजी हूँ, अगर मैं कोई जवाब नहीं दे रहा हूँ तो परेशान करना जरूरी है क्या?" उसने लगभग चिल्लाते हुए माया को आवाज़ लगाई तो माया "आई जी" कहते हुए दौड़ती आयी । "यार, मैंने तुम्हें चाय गर्म करके लाने को कहा था तो परी को क्यों भेज दिया, अगर नहीं गर्म करनी थी तो रहने देती " पापा की बात सुन परी झट से बोली "पापा, चाय तो मम्मी ने ही गर्म करी है, मैं तो सिर्फ आपको देने आयी थी, आप भूल न जाओ इसलिए आपको चाय पीने को कहा, मैंने कौन सी गलती करी मैं तो सिर्फ मम्मी की मदद कर रही थी" कहते हुए वो रोने लगी ।
बेटी को रोते देख रवि ने प्यार से उसको अपने पास बुलाया और कहा "इसमें रोने वाली क्या बात है, मैंने तुम्हें मारा तो नहीं" पापा की बात सुनते ही वह आंखों से आंसू पोंछते हुए बोली "पापा, आपको ये छोटी बात लगती है पर पता है जब हमारे किए गए किसी काम या मदद का कोई महत्व नहीं समझता तो बहुत बुरा लगता है और उसपर बुरी तरह से यूँ चिल्लाना सुनकर रोना तो आता ही है न पापा, मम्मी पूरा दिन "आई जी" करते हुए आपकी हर बात मानती है और आपको ऐसा बर्ताव करते देख उनका मन भी रोने को करता होगा पर वह रोती नहीं है" । बेटी की बातें सुन माया का गला भर आया था, वह कैसे कहे कि वह कितनी ही बार छुप-छुप कर रोती है और किसी को पता भी नहीं चलता ।
"पापा, मैंने कितनी बार नोटिस किया है कि घर का कोई भी काम हो तो आप मम्मी को बार-बार आवाज़ देते हो और अगर वह कुछ कह दें तो आप काम बीच में ही छोड़ देते हो, आप नहीं समझते कि मम्मी भी तो अपने काम में व्यस्त है परंतु आपको मम्मी के काम छोटे लगते हैं और अपने काम बड़े" बेटी की बातों को सुनकर रवि शर्मिंदा हो गया था, उसने बेटी और पत्नी को वादा किया कि वह आगे से ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे उसके परिवार की आंखों में आंसू आए ।
"परी, मेरी बेटी, आज तुमने मेरी माँ की भूमिका निभाई है, माँ ही मुझे ऐसे समझाती थी, उनके जाने के बाद कभी किसी ने मुझे यूँ नहीं डाँटा" रवि ने कान पकड़ते हुए दोनों से माफी मांगी ।
दोस्तो, कभी-कभी जो बात बड़े नहीं समझ पाते या कह नहीं पाते, बच्चे अपनी मासूमियत और तर्कों से बड़ी सरलता से वह बात समझा देते हैं। बच्चे हमेशा सच्चे मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं, अपने बच्चों को सदैव ध्यान से सुनें क्योंकि उनके विचार व निर्णय माँ या पिता के पक्ष में नहीं बल्कि निष्पक्ष होते हैं, उनको अपने माता और पिता दोनों के स्नेह व साथ की हर वक़्त जरूरत होती है।
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धन्यवाद ।
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