आत्मनिर्भर

आत्मनिर्भरता पर एक कविता

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Sunita Pawar
Sunita Pawar 29 May, 2020 | 1 min read

क्या कर लेगा कोई सितमगर

जब अपनी ही होगी रेत

अपना ही होगा संगमरमर


क्या कर लेगा तूफान भयंकर

जब अपनी होगी छावनी

और अपने ही होंगे बंकर


कैसे कोई उठा लेगा तुमसे अवसर

जब अपना ही होगा दफ्तर

और अपना ही होगा अफसर


कैसे कोई समझेगा हमको कमतर

जब अपनी ही होगी डगर

और अपना ही होगा घर


धीरे-धीरे ही सही पर

अब बढ़ाएंगे अपना स्तर

छोटे से ही क्यूँ न हों पर ,

बड़े कीमती होंगे अपने हस्ताक्षर


न गुलाम बनेंगे दिखावे छलावे के

न होंगे किसी पर भी अब निर्भर

खुशी से अपना हर काम निपटाएंगे

हमको बनना ही है आत्मनिर्भर

तभी तो स्वतंत्र कहलायेंगे

भारत को विश्व विजयी बनाएंगे

आत्मनिर्भरता से जियेंगे,

आत्मनिर्भरता से मुस्कुरायेंगें ।


सुनीता पवार









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Sunita Pawar

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