एक बीज बोया था आम का ,
पता नहीं था कि उसमें जीवन भी होता है ।
मुझे लगा था बड़ा ही आम सा ,
पता नही था उसमें तो पूरा वन भी होता है ।
वो पथरीली मिट्टी में कोमलता से फूटा ,
उसको धरती ने अपने प्रेम से सींचा ।
उसका एक भी पत्ता भी न टूटा ,
वो खुले आसमान तले पहुँचा ।
वो बरसात में जम कर भीगा ,
आंधियों से भी न घबराया ।
वो सर्द रातों से भी न भागा ,
वो भरी गर्मी से भी न मुरझाया ।
वो निरन्तर बढ़ता ही गया,
लहराता रहा चाहे शाम हो या सवेरा
मजबूत टहनियों से भरता ही गया,
न जाने कितने पंछियों का दिया बसेरा ।
उसने मीठे मीठे फल दिये,
हर राहगीर को निष्पक्ष छांव दी ।
उसने घटाओं को बुलाया,
उसने भूख मिटाई कितने गांव की ।
कभी बंदर छलांगे भरते थे ,
कभी तोते उस पर विचरते थे ।
कभी कोयल कुहू कुहू गाती थी ,
चिडियाँ जी भर चहचहाती थीं ।
मानव को वो जीवन वायु देता रहा ,
उम्र को उसकी दीर्घायु देता रहा ।
मानव ने उस पर पत्थर बरसाये ,
क्रूरता से तोड़ कर उसके फल खाये ।
उसकी मजबूत टहनियों को तोड़ डाला ,
उसके जानदार तने को झकझोर डाला ।
अपने घर के सुंदर दरवाजे खातिर ,
पंछियों के घरों को उजाड़ दिया ।
मधु बनाती मधुमखियों के छत्तों को ,
धुआँ देकर सब कबाड़ किया ।
वो आम का पेड़ कट गया ,
अब घटायें भी बरसना बंद हुईं ।
पंछी भी बेघर होते गये,
चहचहाटें भी अब मंद हुईं ।
हवाओं में धुआँ भर गया,
उम्र की साँसे भी चंद हुईं ।
न मधु की न फलों की खुशबू रही ,
मीठी सुगन्ध भी अब दुर्गंध हुई ।
वो आम की जगह बंजर धरा रह गयी,
जैसे बिन बालक के माँ बेजान पिंजरा रह गयी ।
मैंने वसुंदरा को उसका लाल लौटाने का सोच लिया है,
मैंने अपने ही आँगन में एक आम का बीज रोप दिया है ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut sunder😍😍
Very nice
बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना👍👍👏👏
Thankyou Vineeta ji, Babita ji, Gajender ji🙏
This is outstanding ... I felt it ..
Lovely poem,👍👍
Bhut khub !!
Very well written
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