आम का पेड़ #EnvironmentDay

Hindi poem on environment day

Originally published in hi
❤️ 6
💬 8
👁 776
Sunita Pawar
Sunita Pawar 05 Jun, 2020 | 1 min read

एक बीज बोया था आम का ,

पता नहीं था कि उसमें जीवन भी होता है ।

मुझे लगा था बड़ा ही आम सा ,

पता नही था उसमें तो पूरा वन भी होता है ।


वो पथरीली मिट्टी में कोमलता से फूटा ,

उसको धरती ने अपने प्रेम से सींचा ।

उसका एक भी पत्ता भी न टूटा ,

वो खुले आसमान तले पहुँचा ।


वो बरसात में जम कर भीगा ,

आंधियों से भी न घबराया ।

वो सर्द रातों से भी न भागा ,

वो भरी गर्मी से भी न मुरझाया ।


वो निरन्तर बढ़ता ही गया, 

लहराता रहा चाहे शाम हो या सवेरा

मजबूत टहनियों से भरता ही गया,

न जाने कितने पंछियों का दिया बसेरा ।


उसने मीठे मीठे फल दिये,

हर राहगीर को निष्पक्ष छांव दी ।

उसने घटाओं को बुलाया,

उसने भूख मिटाई कितने गांव की ।


कभी बंदर छलांगे भरते थे ,

कभी तोते उस पर विचरते थे ।

कभी कोयल कुहू कुहू गाती थी ,

चिडियाँ जी भर चहचहाती थीं ।


मानव को वो जीवन वायु देता रहा ,

उम्र को उसकी दीर्घायु देता रहा ।

मानव ने उस पर पत्थर बरसाये ,

क्रूरता से तोड़ कर उसके फल खाये ।

उसकी मजबूत टहनियों को तोड़ डाला ,

उसके जानदार तने को झकझोर डाला ।


अपने घर के सुंदर दरवाजे खातिर ,

पंछियों के घरों को उजाड़ दिया ।

मधु बनाती मधुमखियों के छत्तों को ,

धुआँ देकर सब कबाड़ किया ।


वो आम का पेड़ कट गया ,

अब घटायें भी बरसना बंद हुईं ।

पंछी भी बेघर होते गये,

चहचहाटें भी अब मंद हुईं ।

हवाओं में धुआँ भर गया,

उम्र की साँसे भी चंद हुईं ।

न मधु की न फलों की खुशबू रही ,

मीठी सुगन्ध भी अब दुर्गंध हुई ।


वो आम की जगह बंजर धरा रह गयी,

जैसे बिन बालक के माँ बेजान पिंजरा रह गयी ।

मैंने वसुंदरा को उसका लाल लौटाने का सोच लिया है,

मैंने अपने ही आँगन में एक आम का बीज रोप दिया है ।






6 likes

Support Sunita Pawar

Please login to support the author.

Published By

Sunita Pawar

meri_pankti-man_ke_vichar023h

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.