"माँ.. अच्छी बात है की तुम सबकी मदद करती हो पर वो भोला.. उसको क्यूँ पैसे दिए तुमने वो कभी वापिस नही लौटाएगा ..रात में शराब पीयेगा आपके पैसों से..अपने लिए भी थोडा बचा कर रखो...मैं भी थोडा बहुत ही कमा पाता हूँ...बुढापे में बीमारी के वक्त काम आयेगा..आपकी बहू भी नाराज़ होती है"..रवि ने कहा
"अरे काहे इतनी साहूकारी करता है बेटा..मैंने भोला को पैसे नहीं एक कटोरी दाल-चावल खरीद कर दिए हैं..उसके घर चूल्हा तो जल रहा है पर पकाने को कुछ नहीं था बस इसलिए...थोड़ी बहुत नेकी भी तो जमा करनी है अपने खाते में"..कह कर माँ हरी-भजन में डूब गयी!
हफ्ता ही बीता था..पता चला रवि की माँ को प्रात: चार बजे दिल का दौरा पड़ा और हरी बोल स्वर्ग सिधार गयीं..न तो उन्होंने किसी बीमारी का सामना किया..न किसी से सेवा करवाई और न ही किसी से एक रूपया भी खर्च करवाया..बस सबके दिल में अपनी जगह बना कर चली गयीं..!
सच ही कहा है की ऊपर वाला सबसे सच्चा और बड़ा साहूकार है वो सबके कर्मों का हिसाब-किताब रखता है!
©सुनीता पवार
©सुनीता पवार
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