"आखिर आज मेरे हाथों में आ ही गई ये रंग-बिरंगी सुंदर सी चिड़िया" राज़ ने दोनों हथेलियों में जकड़े चिड़िया को चूमते हुए कहा ।
वह रोज़ उसको एक डाल से दूसरी डाल पर मस्ती से फुदकते हुए देखता, उसकी मधुर वाणी का आनंद लेता, उसकी सुंदरता आँखों को सकून देती और उसकी मौजूदगी उसके दिल को करार । राज़ का प्रेम उसके लिए सच्चा था,वह दाना-पानी के लिए उसे यहां-वहां भटकते नहीं देख सकता था इसलिए वह उसके लिए ताज़ा पानी रखता और दाने भी डालता था । वह मुंडेर पर आती, दूर से दाना चुगती और राज़ के पास आते ही अपनी सुरक्षा खातिर उड़ जाती। पर आज राज़ के पास आते ही वह न उड़ी, शायद उसे भरोसा था कि राज़ उसको नुकसान नहीं पहुंचायेगा। अब वह राज़ के हाथों में थी, राज़ ने उसे पिंजरे में डाल दिया ताकि कोई खतरा उसके पास न फटके। चिड़िया कुछ देर पिंजरे में पंख फैलाती रही, कुछ गाती भी रही, राज़ का दिया दाना-पानी भी चुगती रही। परंतु राज़ अब उसे चैन का एक पल भी न गुज़ारने देता, उसके पंखों को छेड़ता तो कभी चहकने पर मजबूर करता। जबरदस्ती उसको अपनी पसंद का सबसे बेहतरीन दाना खिलाने की कोशिश करता। चिड़िया चुप हो गई। राज़ उसको आज़ाद करने की सोचता पर हिम्मत न जुटा पाता क्यूंकी उसे पता था कि वह लौट कर कभी नहीं आयेगी।
आखिरकार , राज़ ने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया, चिड़िया उसके कांधो पर बैठ गई, राज़ ने उसको आसमान की ओर उड़ाया, वह उड़ी और कुछ समय बाद चहकती लौट आई । राज़ समझ गया कि प्रेम पिंजरा नहीं आज़ादी मांगता है, प्रेम लौट कर आता है।
स्वरचित कहानी
सुनीता पवार
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