सूरज और परी स्कूल से लौटे ही थे की देखा माँ समान बाँध रही है "माँ..क्या हम कहीं जा रहे है.." परी ने पूछा ।
"हाँ परी हम लोग अपने पुश्तैनी घर अलीगढ जा रहे हैं..कई सालों बाद हमारा पूरा परिवार एक साथ इकठ्ठा हो रहा है..इस बार हम होली वहां ही मनाएंगे"..माँ ने खुश होते हुए कहा ।
"पर माँ..हमको नहीं जाना..हमारे सारे दोस्त यहाँ पर हैं..आप सब बड़े लोगों में हमको क्या मजा आएगा.." सूरज ने लगभग चिल्लाते हुए कहा ।
"सूरज..बेटा वहां तुम्हारे चचेरे भाई बहन भी होंगे..सबके साथ मिलकर होली खेलने में बहुत मज़ा आता है."..माँ ने बच्चो को समझाते हुए कहा ।
सूरज और परी को ऐसा प्रतीत हो रहा थी की मानो मम्मी-पापा ने उनसे सारी खुशियाँ ही छीन ली हों..। चचेरे भाई बहनों को अच्छे से जानते भी नहीं थे वो लोग..अब तो होली मनाने का उत्साह ही जाता रहा था दोनों का ।
शाम को जब पापा बच्चों को बाज़ार ले गए परन्तु बच्चों ने कुछ नहीं खरीदा..न पिचकारी..न गुब्बारे और न ही किसी तरह का कोई रंग ।
अगले दिन सुबह की रेलगाड़ी से पूरा परिवार अलीगढ जा पहुंचा ।
सूरज और परी जब दादी के पाँव छूने लगे तो दादी ने दोनों को कस कर अपने गले लगा लिया और दोनों के गालो पर चुम्बनों की बरसात कर दी । सबने सूरज और परी को खूब प्यार किया ।
बड़ी बुआ के बच्चे उनसे उम्र में पांच-छ: साल बड़े थे और चाचा के बच्चे उनसे दो तीन साल ही छोटे थे..। पूरा दिन घर में खूब शोर शराबा रहा..सूरज और परी भी अब चचेरे भाई बहनों के साथ घुल-मिल गये थे..। घर की महिलाएं गीत गुनगुनाते हुए गुजिया बना रही थी..खुशबू से सारा घर महक उठा था ।
"माँ ये क्या..हम पुराने कपड़े पहनेगे..नये सफेद कपड़े कहाँ हैं ??" माँ ने हंसते हुए कहा "बेटा..यहाँ ऐसे ही होली खेलते हैं..ये सब चोंचले यहाँ नही होते..और तुम लोगो को मुंह पर तेल लगाने की जरूरत भी नही हैं..यहाँ केवल गुलाल से ही होली खेली जाती है..ग्रीस या त्वचा को नुकसान करने वाले मिलावटी रंगों का इस्तेमाल नहीं होता यहाँ"।
सभी बच्चे अपनी पिचकारी और गुब्बारों के साथ तैयार थे पर सूरज और परी तो एक दूसरे का मुंह देख रहे थे..उनको बुरा भी लग रहा था की काश कल पापा के साथ बाज़ार से कुछ खरीद ही लिया होता ।
"धप्पा..ये रही..तुम्हारी पिचकारी और तुम्हारे गुब्बारे" पापा ने अचानक ही पीछे से आकर बच्चों को हैरान कर दिया था ।
"हैप्पी होली पापा" ख़ुशी के मारे दोनों बच्चे पापा से लिपटे ही थे की चाचा ने आकर पानी की पूरी बाल्टी उन पर उड़ेल दी ।
बदले में तीनो ने भी पिचकारी और गुब्बारों से चाचा को भिगो दिया ।
रात के 1 बज गये थे पर नींद किसी के आसपास भी न फटकी थी क्यूंकि ताउजी पर भांग का नशा जो चढ़ा था.."रंग बरसे" गाना रुक ही न रहा था..पूरा परिवार इस मस्ती में उनका भरपूर साथ दे रहा था ।
घर लौटने का समय आया पर सूरज और परी जाना नहीं चाहते थे, आज उनको इस बात का अहसास हुआ था की अपने परिवार के साथ त्यौहार मनाने में कितना मज़ा आता है..किसी भी दोस्त की याद तक न आई थी उनको..।
रेल में जब पापा ने दोनों बच्चों से पूछा "बताओ कैसी रही इस बार की होली तुम्हारी???"
"बिलकुल अपनी सी..कोई दिखावा नहीं कोई बनावट नहीं..बस सब कुछ अपना अपना सा लगा पापा.." ।
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