मेरी कलम

बंदिश हम पे लगा सकते हो मगर मेरी कलम को गुलाम नहीं बना सकते।।

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Maunsh Shilpasingh
Maunsh Shilpasingh 08 Jun, 2021 | 1 min read
@charu


कुछ जख्म दर्द नहीं देते ,

बस वजह देते है दूरियों की,


कुछ दूरियों की वजह नहीं होती,

बस मरहम होते है पुराने ज़ख्मों की,


कुछ मरहम दुकानों में नहीं बिकते,

बस लेप होते है सुकून के लम्हों की,


कुछ लम्हें यूं ही नहीं मिलते,

लूटना पड़ता है चैनों अमन वर्षों की,


कुछ दुश्मन बदला नहीं लेते,

बस ओढ़ लेते है आफताब दोस्ती की,


हर आफताब असली नहीं होती,

बस उतरते नहीं नक़ाब जल्दी किसी की,


हम तो *बेपरवाह* हैं बेपरवाही में जिंदगी गुजार दी,

बस एक परवाह उसकी ता उम्र की,


वो सौदागर निकले मोहब्बत के,

बस हम बेच ना पाए आबरू अपनी,


 वो सौदा मेरी मौत का भी कर देते ,

बस उन्हें वक्त पर मिली नहीं खबर मेरी मौत की,


कोशिश बहुत की बंदिश में बांधने की,

बस *मेरी कलम* को गुलाम ना बना सकी।।


*बेपरवाह* "शिल्पा"

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Maunsh Shilpasingh

maunshshilpasingh

Comments

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  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत अच्छा लिखा शिल्पा 🤗

  • Maunsh Shilpasingh · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks di😍

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