लड़की हूं तो ,
संस्कारों का पाठ सीखूं मैं
और सदाचारी बनके घूमूं मैं
जाऊं बाजार जब भी मैं
तो मर्यादा संग ले जाऊं मैं
गंदी निगाहों से बचना है
तो घर से कपड़ा बांध निकलूं मैं
ऊंच नीच ना हो जाए
तो घर जल्दी वापस आऊं मैं
कोई गलत निगाह से देख रहा
तो गुनहगार कहलाऊं मैं
छोटे कपड़े पहनती हूं
तो चरित्र हीन कहलाऊं मैं
किसी लड़के से बात करूं
तो आवारगी दिखलाती मैं
लड़की हूं ....
लड़की हूं तो ,
क्यों सब कुछ सहती जाऊं मैं
क्यों हर पल खुद को समझाऊं मैं
क्यों हर घड़ी रौंदी जाऊं मैं
क्यों दरिंदों से कुचलीं जाऊं मैं
सोच यहीं हैं लोगों की
कि लड़की खुद बहकाती है
बालात्कारी को पास बुलाती है
लड़की गलत ही होती है , लड़की गलत ही होती है ।।
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