ऊँचे ऊँचे सुंदर पर्वत
बादलों को छू जाते है
बादलों को चीरती सूरज की किरणें
धरती की गोद मे समाती है
पहाड़ो से बहते झरने
जो मधुर शोर सुनाते है
मिलकर नदियों संग जो
कलकल गीत बन जाते है
हरी हरी दूब संग जो
रंग बिरंगे फूल खिल जाते है
यूँ लगता है जैसे नन्हे बच्चे
माँ के आँचल में मुस्काते है
ये मनमोहक मनोरम दृश्य
आँखों को सुकून पहुँचाते है
अहा, प्रकृति कितनी सुंदर है
हम
यही सोचते रह जाते है.......
मगर!!!!!!!!! अब.....
अब तो बस गगनचुम्बी इमारते रही
पर्वतों को तोड़ा जा रहा है
नित नए अनुसंधान और खोज के लिए
मानव आकाश तक कदम बढ़ा रहा है
मानव की जरूरत और करतूतों से
प्रदूषण ही फैलता जा रहा है
झरने बहना भूल गए
नदियों पर सूखा छा रहा है
हरियाली कहीं नजर नही आती
तबाही का दौर चलता आ रहा है
क्या प्रकृति वाक़ई सुंदर है!!
बस प्रश्न ही है, जिसका जवाब ढूँढा जा रहा है
स्वरचित व मौलिक
मनप्रीत मखीजा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
This is ♥️
Lovely
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