"लगता है आज फिर किसी दर्द से गुजरी है ...देखो तो आँखे कितनी नम है! और गला भी रुआँसा है शायद , तभी तो बार बार अपने दर्द को पीने की कोशिश कर रही है।" डायरी के पहले पन्ने ने कहना शुरू किया।
" लेकिन..एक बार जब लिखने आई थी तो कितनी खुश थी । मुझ पर अपने मन का समस्त हर्षोउल्लास उकेर दिया हो जैसे। इसकी खुशी में लिखा गया हर शब्द मुझे भी लबरेज़ कर गया था और लाल स्याही में डूबकर शब्द भी नाच रहे थे मुझ पर और..... " दूसरे पन्ने की बात अधूरी रही। वो पन्ने पलटती जा रही थी। डायरी के मध्य में एक पन्ने पर उसकी उंगलियाँ ठहर गई। वो उस पन्ने को प्यार से सहला रही थी मानो जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सहला रही हो। कुछ क्षण बाद , उसकी आँखों से एक मोती गिरा । उस नमी से ही बहुत कुछ महसूस कर लिया था डायरी के पन्नो ने। डायरी के पन्ने हवा का सहारा लेकर फड़फड़ाना चाह रहे थे जैसे किसी अनहोनी के अंदेशा पाकर व्याकुल हो उठे हो। वे असहाय से पन्ने मिलकर उसे रोक न सके और वो आख़िरी चंद शब्द लिखकर कलम तोड़ चुकी थी। वो अधभरा पन्ना सबसे अनुभवी रहा जिसपर लिखा था,
"स्त्री और जिंदगी सब सह लेती है अपमान , दर्द....मगर धोखा नही सहा जाता। अलविदा।"
स्वरचित व मौलिक
मनप्रीत मखीजा
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