आज उठाई है कलम मैंने अब मैं अपनी ही कहानी लिखूँगी
क़ैद है जो ख्वाहिशों के परिंदे दिल के पिंजरे में
आसमां तक छू जाने को आज उन्हें आजाद करुँगी
देखा है मैंने अक्सर लहरों को मनमौजी में बहते हुए
महसूस किया है खुली हवा को बेफिक्र सा चलते हुए
तो क्या हुआ अगर मैं लड़की हूँ मैं भी अपने ख्वाब बुनूँगी
कोई बांध न पायेगा जिसे ऐसी बेक़ैद सोच बनूँगी
एक उम्र बिताई है मैंने औरों के लिए जीकर
तो भी रखा था सपनो को आँखों मे सजाकर
कुछ खास नही चाहती बस अपनी एक पहचान बनानी है
अपनो की ही नजर में अपने लिए फिक्र और इज्जत कमानी है।
अब वो मैं पाकर रहूँगी
अपनी पहचान बनाकर रहूँगी
स्वरचित रचना
मनप्रीत मखीजा
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