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मेरी पहचान की कविता

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Manpreet Makhija
Manpreet Makhija 10 Mar, 2020 | 0 mins read

आज उठाई है कलम मैंने अब मैं अपनी ही कहानी लिखूँगी

क़ैद है जो ख्वाहिशों के परिंदे दिल के पिंजरे में

आसमां तक छू जाने को आज उन्हें आजाद करुँगी

देखा है मैंने अक्सर लहरों को मनमौजी में बहते हुए

महसूस किया है खुली हवा को बेफिक्र सा चलते हुए

तो क्या हुआ अगर मैं लड़की हूँ मैं भी अपने ख्वाब बुनूँगी

कोई बांध न पायेगा जिसे ऐसी बेक़ैद सोच बनूँगी

एक उम्र बिताई है मैंने औरों के लिए जीकर

तो भी रखा था सपनो को आँखों मे सजाकर

कुछ खास नही चाहती बस अपनी एक पहचान बनानी है

अपनो की ही नजर में अपने लिए फिक्र और इज्जत कमानी है।

अब वो मैं पाकर रहूँगी

अपनी पहचान बनाकर रहूँगी

स्वरचित रचना

मनप्रीत मखीजा

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