पुनर्जन्म? बदले के लिए!! भाग - 2

क्या आप परा वैज्ञानिक बातों को मानते हैं ? क्या आपको पुनर्जन्म में विश्वास है ? क्या कुदरत न्याय दिलाने के लिए दखल देती है ? ये कहानी इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करती है। या कहीं, नए प्रश्नों को जन्म तो नही दे देती है। पढ़िए, कुदरत के न्याय की अद्भुत कहानी।

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Manoj Kumar Srivastava
Manoj Kumar Srivastava 06 Sep, 2022 | 1 min read

"कुछ नहीं होगा बेटा तुमको। मम्मा तुम्हारे साथ है बेटा" और फिर पलट कर सुमन ने महेश से कहा, "जल्दी निकलो महेश यहां से। में एक क्षण भी यहां नहीं रुक सकती।" सुमन ने रामू को अपने गोद में खींच लिया।

चार साल के बच्चे के मुंह से ये बातें सुन कर दंग थी सुमन। चार साल की उम्र ही क्या होती है। खुद से तो ये कहानी बना नहीं सकता। कुछ तो गड़बड़ है।

खैर, वो लोग पिकनिक स्पॉट पर गए। पर ये घटना और रामू की बातें पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। रामू भी पूरे समय उदास सा रहा। क्या कह रहा था। कहीं पिछले जन्म की बातें तो नहीं कर रहा था? लेकिन क्या ऐसा होता है? इसी उधेड़बुन की भेंट उनकी पिकनिक चढ़ गई।

पिकनिक तो क्या रही, जल्दी ही वो लोग घर आ गए।

अगला दिन...

" सुमी, कहीं कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ है", सुमन को अपनी बाहों में भरते हुए महेश ने कहा।

" हां, लगता तो मुझे भी है। कुछ बात तो जरूर है", सुमन ने सिमटते हुए कहा।

"रामू को बुला कर पूछे?"

"अभी वो बहुत छोटा है महेश। परेशान हो जायेगा।"

"हां बात तो सही है, पर..." महेश अजीब दुविधा में फंसा हुआ था।

" रामू, बेटा यहां आओ", सुमन ने रामू को बुलाया।

"हां मम्मा। क्या बात है?"

रामू अपनी छोटी सी साइकिल पर सवार होकर तुरंत पहुंच गया। सुमन ने उठा कर उसको अपनी गोद में ले लिया।

"मम्मा के बेटा को कौन परेशान कर रहा था कल?"

"अच्छा कल! ड्रैगन था मम्मा!"

सुमन की गोद से उछल कर, अपनी साइकिल लेकर रामू खेलने भाग गया।

"इसे तो कुछ भी याद नहीं, महेश", सुमन भी उसके पीछे पीछे चली गई।

महेश पिता होने के साथ साथ एक पुलिस वाला भी था। उसे चिंता तो थी ही पर दाल में कुछ काला लग रहा था। बार बार घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी। कल तो दुर्घटना का स्थल भी सामने आ गया।

खैर, बात आई गई हो गई। दिन महीनों में और महीने वर्षों में बीतने लगे। महेश, सुमन और रामू तीनों ही इस घटना को भूल गए। दो वर्षों में फिर ये घटना नहीं घटी। सब कुछ सामान्य हो गया था। रामू अब छह वर्ष का होने को था। चंचल प्रवृत्ति। हमेशा कुछ न कुछ करता रहता था। उसके छठे जन्मदिन के एक दिन पहले उन लोगों ने महेश्वर डैम जाने का प्रोग्राम बनाया।

खाने - पीने का सारा सामान कार में पैक कर रख दिया गया था। महेश कार ड्राइव कर रहा था। सुमन और रामू पीछे बैठे थे। ताज़ी पहाड़ी हवा सुकून दे रही थी। लेकिन जैसे जैसे पुल पास आ रहा था, महेश के अंदर एक अजीब सी बेचैनी बढ़ रही थी। वो नजरें चुरा कर बार बार रामू को देख रहा था।

" पापा! कार तेज चलाओ पापा! वो चारों मुझे मार डालेंगे! मम्मा!" रामू सुमन की गोद में छिप गया।

महेश ने तेज़ी से ब्रेक लगाया। कार अचानक रुक गई। धूल का झोंका कार को सहलाता हुआ आगे चला गया।

"रामू बेटा, रामू! पापा तुम्हारे साथ हैं बेटा।" कार को जल्दी से किनारे लगा कर महेश लपक कर रामू के पास पहुंचा।

"पापा!!" कहते हुए रामू महेश से चिपक गया। सुमन भी जल्दी से बाहर आ गई।

"रामू, मेरा बेटा! कुछ नहीं होगा तुम्हें। मम्मा पापा साथ है तुम्हारे" रामू के बालों को सहलाते हुए सुमन ने रामू को सीने से लगा लिया।

"कौन है बेटा? कौन तुम्हें परेशान कर रहा है?" महेश ने धीमी आवाज में रामू से पूछा।

" अब महेश प्लीज! अपनी जांच पड़ताल ना करते तो अच्छा रहता। बच्चा है। तुम तो मत उसे परेशान करो!" सुमन गुस्से में बोली।

"सुमी, मैं कोई उसका दुश्मन नहीं हूं। अब इस बात का हल नहीं निकला तो रामू जिंदगी भर परेशान रहेगा। हां बेटा।"

"पापा" रामू उसके अंदर जैसे छुप जाना चाहता था।

"हां बेटा हां।"

कुछ देर बाद जब रामू कुछ संयत हुआ तो उसने बोलना शुरू किया। उसने जोर से महेश की शर्ट पकड़ रखी थी। आखें अभी भी लाल थीं।

" पापा, उन चारों ने मुझे यहीं मार डाला था। उसी चट्टान के पीछे। श्याम और आनंद ने मेरे हाथों को जकड़ रखा था। राजन खड़ा होकर देख रहा था कि कोई आए तो अगाह कर दे। भईया ने मुझे लोहे की रॉड से, सिर पर मार मार के मार डाला। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता। देखो यहां मारा था", रामू ने अपने सिर को छूकर बताया।

बोलते बोलते रामू के होंठ सूख गए। महेश और सुमन का चेहरा भी स्याह पड़ चुका था। सुमन की हिचकियां थी कि रुक नहीं रहीं थीं। काम से कम आधे घंटे वो वहीं बैठे रह गए। महेश्वर डैम कौन जाता। वहीं से वो लौट गए। किसी तरह रात बीती। दिन तो बर्बाद हो ही चुका था।

टिप्पणी:- शेष कहानी अगले भाग, भाग - 3 में। इंतजार कीजिए।




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