"सुनो", सुमन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"क्या हुआ? फिर से क्या? सुमी, मुझे ये रिपोर्ट पूरी करनी है। सवेरे कप्तान साहब के ऑफिस में पहुंचाना है।"
डिप्टी एस पी महेश सक्सेना सिर झुकाए तेजी से लैपटॉप पर टाइप कर रहे थे। उनकी आवाज में झुंझलाहट साफ नजर आ रही थी।
" सुनो ना। रामू फिर से वैसी ही अजीब अजीब हरकतें कर रहा है। जल्दी चलो!"
महेश ने मुड़ कर देखा। सुमन के चेहरे से लग रहा था की कुछ ज्यादा ही गड़बड़ है। वो जानता था कि सुमन एक समझदार महिला है। बिना कारण ऐसा नहीं कर सकती थी। और, वो भी इस समय। तारीख बदल चुकी थी।
" क्या हुआ सुमी?"
"पता नहीं!" सुमन महेश का हाथ पकड़ कर लगभग घसीटते हुए उसे बेडरूम में ले गई।
रामू बेडरूम में डबल बेड पर अशांत पड़ा हुआ था। इधर उधर करवट बदल रहा था। बड़बड़ा रहा था। उनका इकलौता बेटा रामू। छोटा सा रामू। अजीब स्थिति में था।
"नहीं नहीं आनंद! मत मारो मुझे! मैने क्या बिगाड़ा है तुम लोगों का! भईया!! तुम तो मेरे भाई हो। बचा लो मुझे भैया!! तुम भी! आह! नहीं!!"
लगभग चीखते हुए रामू डबल बेड से नीचे गिर गया। सुमन महेश, दोनों उधर लपके। उसके मुंह से झाग निकल रहा था। बेहोश। सीना धौकनी की तरह उठ बैठ रहा था। शरीर पसीने से लथपथ। कोई हरकत नहीं।
"रामू! रामू! देखो ना महेश इसे क्या हो गया है? प्लीज़, देखो ना!" सुमन रामू को सीने से चिपकाए रोए जा रही थी।
महेश कुछ समझ नहीं पा रहा था। दोनों को उसने सीने लगा लिया। बेटा अजीबोगरीब परिस्थिति में बेहोश पड़ा था। पत्नी जार जार होकर रोए जा रही थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था। चिंता उसको जकड़े जा रही थी।
पुलिस की नौकरी में हजारों अजीबोगरीब केस उसके सामने आ चुके थे। पर ये। वो भी उसका अपना बेटा। वो चिंतित था। बेहद चिंतित। रात आंखों ही आंखों में कट गई।
अगला दिन।
जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो! रामू फिर से वही शरारती बच्चे की तरह उछल कूद मचा रहा था। लेकिन सुमन और महेश गहरी चिंता में पड़े चुपचाप उसे देख रहे थे। रात की घटना पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। ये दूसरी बार था। पिछली बार ये घटना तब घटी थी जब वो लोग पिकनिक मनाने महेश्वर डैम जा रहे थे।
"धीमे महेश, धीमे। तुम बहुत तेज चला रहे हो। धीमे प्लीज!" सुमन ने महेश के कंधे पर सिर रख कर प्यार से कहा।
"हा! हा! सुमी। मुझसे आगे कोई नहीं निकल सकता है। सारी दुनिया मेरे पीछे है!!" महेश ने जोर से चीखते हुए कहा। ड्राइविंग में उसे बड़ा मज़ा आता था। कार भगाना उसे बहुत अच्छा लगता था। सड़क का सीना चीरते हुए कार स्पीड में भागी जा रही थी। चढ़ाई शुरू हो चुकी थी। महेश्वर डैम नज़दीक ही था। सामने पुल था।
"पापा मम्मा। यहीं उन लोगों ने मुझे मारा था। इसी पुल के पास। ऊपर। उस चट्टान के दूसरी तरफ।"
कार पुल से भिड़ते भिड़ते बची। इतने जोर से महेश ने ब्रेक लगाया की कार फिसल कर पुल की रेलिंग से लगभग भिड़ ही गई थी।
"सुमी! क्या बोल रहा है रामू!" महेश को जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।
"क्या कहानी बना रहे हो रामू! क्या बोल रहे हो!" सुमन बेहद घबरा गई थी।
और रामू!! पूरा चेहरा लाल हो गया था। आंखों में जैसे खून उतर आया हो।
" चारों ने मिलकर मुझे मार डाला! चारों ने मार डाला!!"
टिप्पणी - शेष कहानी अगले भाग,भाग - 2 में। इंतजार कीजिए।
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