धुप खिली हुई थीI बच्चे घर से बाहर पुलिया के पास खेल रहे थेI उन्ही में से कुछ बच्चों ने उस लाश को देखाI लाश एक युवती की थीI गठा हुआ बदनI कपडे उसके फैशन परस्त होने और अच्छे टेस्ट की गवाही दे रहे थेI पोल्का डॉट्स की सफ़ेद टी शर्ट और काले रंग की स्लिम पैन्ट्सI साधारण सा हार गले में थाI उसके काले रंग के पॉइंटेड जूते बगल में पड़े हुए थे Iचेहरा इतनी बुरी तरह से कुचल दिया गया था की पहचान पाना मुश्किल था Iपुलिस को तुरंत सूचना दे दी गयी कुछ ही देर में वो वह पहुँच भी गयीI
"सर, ऐसा लगता है ये वही लड़की हैI शायद इसी के गायब होने की रिपोर्ट कल थाने में दर्ज हुयी थी " कांस्टेबल जीवन कुमार ने शव को देखते हुए कहाI
"हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता हैI" इंस्पेक्टर लाल चंद ने सहमति जताईI
"तो, सर क्या उस परिवार को सूचना भिजवा दे, जिसने रिपोर्ट दर्ज कराई थी?" कांस्टेबल शिव राम ने पूछा I
"ठीक हैI सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर लोI पूरी जगह को अच्छे से छान मारोI कोई भी कोना अतरा न बचेI सबूत कोई छूटने न पाएI कुछ मिले तो मुझे तुरंत सूचना देना" कहते हुए इंस्पेक्टर अपनी जीप की तरफ बढ़ गए I
पुलिस टीम अपने काम पर लग गयीI थोड़ी देर बाद थाने से इंस्पेक्टर साहब ने शिव राम को कॉल कियाI
"शिव राम, लड़की के पिता को बुलाओ थानेI पर उसे ये मत बताना की हमें लाश मिल गयी हैI उससे कहना की कुछ और जानकारी की आवश्यकता हैIजल्दी आयेI"
"सर"
कोई आधे घंटे के बाद लड़की के पिता पवन वर्मा अपने बेटे सूरज के साथ थाने पहुंचे I
"आपने हमें बुलाया सर?" पिता ने पूछा I
"हाँ, कुछ बाते पूछनी थीI" इंस्पेक्टर साहब ने उनकी तरफ मुड़ते हुए कहा I
"जिस दिन रीता गायब हुई, उस दिन वो क्या पहने हुए थी?"
"कितनी बार सर ! कितनी बार सर ! हर बार एक ही सवाल I वो सफ़ेद रंग की पोल्का डॉट्स की टी शर्ट, काले रंग की पैंट पहने थी और काले रंग के जूते थे उसकेI सब कुछ तो मैंने रिपोर्ट में दर्ज कराया हैI", वर्मा जी अब एक ही बात बताते बताते उकता चुके थेI
"परेशान मत होइए वर्मा जीI मुझे अपना काम करना है और मैं अपना काम जानता हूँ और कर रहा हूँI आपका सहयोग अपेक्षित है और बिना आपके सहयोग के हम लोग आगे नहीं बढ़ पाएंगेI" लाल चंद ने कुर्सी पर आगे झुकते हुए कहा, "हमें एक लड़की की लाश मिली हैI उसकी शिनाख्त करने के लिए आपको हमारे साथ चलना होगाI"
"हे भगवन! अब ये क्या हो गया!" वर्मा जी कुर्सी पर ही निढाल हो गए I
"वर्मा जी हौसला रखियेI जब आप ठीक समझेंगे तभी हम लोग चलेंगेI" लाल चंद ने ढांढस बधाया I
"नहीं नहीं कुछ नहीं मैं चलने के लिए तैयार हूँ IसूरजI" दुखी आवाज़ में वर्मा जी ने अपने बेटे को पुकारा I
वर्मा जी, सूरज और इंस्पेक्टर लाल चंद अपनी टीम के साथ जीप में बैठ कर घटना स्थल की ओर रवाना हो गएIआशंकाओं से घिरे हुए वर्मा जी आँखें बंद कर कोई प्रार्थना बुदबुदा रहे थे I
घटना स्थल पर भरी भीड़ इक्कठा हो चुकी थी I
"हटो हटो रास्ता दो, जीवन भीड़ हटाओI हटाओ सबकोI" इंस्पेक्टर साहब ने कांस्टेबल जीवन से गुस्से में कहा I
सभी पुलिस वाले भीड़ हटाने में लग गएI इसी बीच लाल चंद, वर्मा जी और सूरज को लेकर लाश तक पहुँच गए I
"मेरी बच्ची, मेरी लाडो!" वर्मा जी लाश को देख कर रोने लगेI हलाँकि लाश का चेहरा बुरी तरह कुचला जा चुका था पर वर्मा जी कपड़ों को देखते ही पहचान गएI
"दीदी, मेरी दीदी!" सूरज लाश से लिपट कर रोने लगा I
“कितनी बार मैंने उस कमीने की शिकायत आपसे की थीI अगर आप लोगों ने उसे पकड़ लिया होता तो आज ये नौबत ना आती, ये दिन ना देखना पड़ताI” वर्मा जी के दुःख का पारावार ना रहा I
"ले लिया उसने अपना बदला! छोडूंगा नहीं उस हरा... को!" सूरज गुस्से और दुःख से भरा हुआ था I
"बॉडी आपको पोस्ट मोर्टेम के बाद सौंप दी जाएगीI कुछ आवश्यकताएं हैं जिन्हे पूरा करना हैI मैं आपका दुःख समझ सकता हूँI" इंस्पेक्टर लाल चंद ने वर्मा जी के कंधे पे अपना हाथ रख कर ढांढस बंधाया I
"जो मन आये सो करियेI रीता तो अब लौट कर आने नहीं वालीI" वर्मा जी दुखी स्वर में बोलेI
पिता-पुत्र पुलिस की जीप से घर चले गएI लाल चंद अपनी टीम के साथ जाँच में जुट गए I
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"शिव राम उस लड़की को बुलवाओI जो आखिरी व्यक्ति थी जिसने रीता को ज़िंदा देखा था, उसके गायब होने के पहले", इंस्पेक्टर ने आदेश दिया I
"सर", शिव राम कॉल करने चल दिया I
कोई आधे घंटे बाद एक लड़की जो रीता की हमउम्र लग रही थी एक अधेड़ व्यक्ति के साथ पुलिस थाने पहुँची I
"सर आपने हमें बुलाया है?" उस अधेड़ व्यक्ति ने इंस्पेक्टर से पूँछा ।
"आप?"
"मैं रतन सिंह हूँ, और ये मेरी बेटी लता हैI इसी की सहेली रीता लापता हैI", उस अधेड़ व्यक्ति ने जवाब दिया
"लापता नहीं ज़नाबI उसका तो क़त्ल हो चुका हैI" इंस्पेक्टर लाल चंद उसको घूरते हुए कहा I
"क़त्ल!!" दोनों पिता-पुत्री चौंक गए । उनको तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था I
"हाँ क़त्लI"
"कब?"
"कल रात कोI आप लोग बैठ जाइयेI मुझे आपसे कुछ सवाल पूछने हैंI"
दोनों लोग इंस्पेक्टर लाल चंद के सामने कुर्सी पर बैठ गए I
"तो लता, तुमने आखरी बार रीता को कब और कहाँ देखा था?" लाल चंद की आँखें लता के चहेरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी I
"सर, रीता कॉलेज से सीधे मेरे घर आयी थीI उसने मोबाइल से मुझसे बात की थीI वो कुछ जल्दी में थीI"
"कैसी जल्दी लता?" इंस्पेक्टर लाल चंद की आँखें उसके चेहरे पे जमी हुई थी I
"सर, रीता ने मुझसे कहा था की वो अपने भाई के लिए शर्ट खरीदना चाहती थीI उसकी बर्थडे दो दिन बाद थीI वो अपने घर अँधेरा होने से पहले पहुँच जाना चाहती थीI उसके माता पिता इस मामले में बहुत सख्त हैंI", लता ने खुलासा किया I
"फिर?"
"फिर सर, हम दोनों मार्किट गएI दो-तीन दुकान देखने के बाद हमको शर्ट मिल गयीI वो जल्दी में थीI पर मैंने जबरदस्ती उसको कोल्ड ड्रिंक पिलाईI उसका मन नहीं थाI वो काफी जल्दी में थीI मार्किट से सीधे हम लोग मेरे घर आयेI कोई चार-पांच मिनट ही बीते होंगे तभी उसके पापा की कॉल उसके मोबाइल पे आयीI जी पापा हाँ पापा बोलती रहीI तुरंत ही मेरे घर से वो चली गयीI बस यही आखरी बार था । फिर मैंने उसे नहीं देखा", लता ने अपनी बात जल्दी से ख़तम कीI
"ठीक है, ठीक हैI देखो लता मुझे तुमसे कुछ और भी पूछना हैI देखो तुम उसकी सबसे अच्छी दोस्त थीI तुमको तो पता ही होगा । क्या उसकी किसी से फ्रेंडशिप थी? मेरा मतलब किसी से कोई अफेयर?"
लता चुप रही और कनखियों से अपने पिता को देखती असहज महसूस कर रही थीI लाल चंद भांप गए I
"सिंह साहब, क्या आप कुछ देर के लिए बाहर जा सकते है? मुझे लता से कुछ पूछना हैI"
"क्यों नहीं सर", कहते हुए रतन सिंह बाहर चले गएI
"तो लता, जैसा की मैं कह रहा था..."
"नहीं सर, उसका किसी से अफेयर वगैरह नहीं थाI पर राकेश! सर राकेश उसका पडोसी थाI वो उसके पीछे पड़ा थाI उसका पीछा करना, उलटे सीधे कमेंट पास करना,और कभी कभी तो उसे धमकी भी देता थाI"
"कौन राकेश? उसका पडोसी? जीवन जहाँ तक मुझे याद है रीता के परिवार ने उसकी शिकायत भी की थीI उसके गलत व्यव्हार को लेकर, क्यों?" इंस्पेक्टर लाल चंद ने जीवन से पुछा I
"हाँ सरI हमने उसे थाने में बुलाकर कड़ी वार्निंग भी दी थीI" जीवन ने हामी भरीI
"सर", रीता ने आगे कहा, "वो लगातार उसे परेशान करता थाI उससे बार बार कहीं बाहर चलने को कहता थाI रीता उसे पूरी तरह नापसंद करती थी या कहना चाहिए उससे नफरत करती थीI उसके परिवार को ये बात पता थीI उसको फ़ोन पर धमकाता भी थाI कहता था चेहरा बिगाड़ देगाI हमेशा उसका पीछा करता रहता था I"
"हूँI" लाल चंद कुर्सी पे थोड़ा पीछे होकर आँखे बंद करके बैठ गए I
"सर, अभी कुछ दिन पहले की बात हैI एक दिन तो उसके धमकी भरे फ़ोन कोई बीस पच्चीस बार आए होंगे I रीता ने ये बात सूरज को बताईI सूरज अपने दोस्तों को लेकर राकेश के पास पहुँच गयाI उसे धमकाते हुए बोला कि अगर वो रीता के आस पास भी नज़र आया या फिर कभी उसे फ़ोन किया तो उससे बुरा कोई नहीं होगाI जवाब में राकेश ने भी उसे धमकी दी थीI जमकर झगड़ा हुआI भाग्य से पडोसी पहुँच गए और दोनों को अलग कियाI" लता बोलती जा रही थी I
"फिर" लाल चंद ने आगे झुकते हुए पूछा I
"सर, फिर दोनों एक दूसरे को देख लेने की धमकी देते हुए वहाँ से चले गएI", लता ने बात ख़तम की I
"जीवन, सिंह साहब को अंदर भेज दोI"
"सर" जीवन, रतन सिंह को बुलाने चला गयाI कुछ ही देर में दोनों लोग अंदर आ गए I
"सिंह साहब आप दोनों लोग जा सकते हैI अगर ज़रुरत हुई तो आपके सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी, धन्यवादI", लाल चंद ने कुर्सी से खड़े होते हुए कहा I
"ठीक है सरI हमारा सहयोग हमेशा बना रहेगाI", कहते हुए रतन सिंह अपनी बेटी के साथ निकल गए I
"जीवन, जीप निकालोI अस्पताल चलना हैI"
इंस्पेक्टर लाल चंद अपनी टीम के साथ अस्पताल पहुंचे जहाँ रीता की बॉडी पोस्ट मोर्टेम के लिए भेजी जा चुकी थीI मृतका के सगे सम्बन्धी, नाते रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी सब वहाँ जमा थेI पुलिस के खिलाफ लोगों में काफी रोष थाI लाल चंद ऐसे अनुभवी अफसर इसे भांप चुके थेI
"इसी ने मेरी बेटी को मारा है!", इंस्पेक्टर लाल चंद को देखते ही रीता की माँ चिल्लाई, "अगर तुमने हमारी शिकायत पर ध्यान दे दिया होता तो आज हमारी बेटी ज़िंदा होतीI हज़ारों शिकायते हमने की । ध्यान नहीं दिया तुमने!"
"प्लीज मैडम प्लीज खुद को सम्भालियेI" लाल चंद खुद भी दुखी थे एक माँ का दर्द देख करI
"क्यों जाने दिया आपने उस कमीने राकेश को? क्यों छोड़ दिया उसको? उसी ने मेरी बेटी को मारा हैI कहता था चेहरा बिगाड़ दूँगाI देखो किस बेरहमी से चेहरा कूँच डाला हैI" कहते कहते जोर जोर से रोने लगीI
लाल चंद खुद बेहद परेशान थे और शायद बेहद नाराज़ भी ।
इसी गमगीन माहौल में अचानक रीता के पिता, वर्मा जी का फ़ोन बजने लगाI वर्मा जी ने फ़ोन उठायाI किसी महिला की आवाज़ थीI “हेलो हेलो”, वर्मा जी ने तुरंत फ़ोन काट दियाI
"कौन था वर्मा जी?" इंस्पेक्टर लाल चंद ने कंधे पे हाथ रखते हुए पूछा
"कोई महिला रिपोर्टर रही होगीI सब मेरे पीछे लगे हुए हैI सबको स्टोरी चाहिएI इनके अंदर कोई दया माया जैसे है ही नहीं! यहाँ एक परिवार हादसे में है, और इनको स्टोरी चाहिएI मेरी एक ही बेटी थी!"
"क्या मैं आपका मोबाइल ले सकता हूँ?" लाल चंद ने पूछा
वर्मा जी ने कुछ नहीं कहाI अपना मोबाइल लाल चंद को दे दियाI इंस्पेक्टर लाल चंद ने उस नंबर को अपनी डायरी में नोट कर लिया जिससे कॉल आयी थीI
"धन्यवाद, आपका मोबाइल" फ़ोन लौटते हुए लाल चंद ने कहा I
वर्मा जी ने इंस्पेक्टर लाल चंद को कुछ पूछती हुयी निगाहों से देखाI जैसे पूछना चाहते हो कि क्या पता लगाI इंस्पेक्टर का चेहरा भाव विहीन थाI अपनी जीप की तरफ बढ़ते हुए उन्होंने कांस्टेबल जीवन से पूछा, "जीवन, ये साला राकेश कहाँ है?"
"तीन दिन पहले लखनऊ के लिए निकला थाI तीन दिनों से वो किसी को दिखा भी नहीं है आस पासI"
"और उसका घर परिवार?"
"घर पे ताला लगा है सरI कोई नहीं हैI अकेला रहता हैI फैमिली लखनऊ में रहती है।"
"कौन है फैमिली में?"
"माँ बाप और एक छोटी बहनI"
"मोबाइल?"
"बंद पड़ा है सरI"
इस समय तक पोस्ट मोर्टेम से जुडी सभी फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकी थीI रीता के परिवार को उसका शव सौंप दिया गयाI रात ज्यादा हो चुकी थी और भीड़ भी छंट चुकी थीI लाल चंद भी अपनी टीम के साथ लौट गए I
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अगला दिनI एकदम अलग माहौलI रीता की मौत की खबर पूरे शहर में फ़ैल चुकी थीI 'मौत का कारण; भारी और भोथरे हथियार से सर पर आयी चोट थीI पूरा चेहरा निर्ममता से कूँच दिया गया थाI पहचानना असंभवI यौन उत्पीड़न का कोई भी निशान न पाया गया, न पोस्टमॉर्टेम में इसके सबूत मिलेI मौत का समय रात 10 बजे दर्शाया गया थाI' सभी अख़बार इस तरह की खबरों से भरे हुए थे।
रीता के माता पिता, दोस्त, सगे सम्बन्धी सभी इस रिपोर्ट से असंतुष्ट थेI और असंतुष्ट थे पुलिस की अक्षमता सेI शव रख कर उन्होंने रास्ता जाम कर दियाI पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे बाजी होने लगीI कई लोकल नेता भी इसमें शामिल हो गएI उन्होंने रीता की अंत्येष्टि करने से इंकार कर दियाI कुछ घंटो बाद भीड़ रीता के शव के साथ कलेक्टर के ऑफिस की तरफ बढ़ चलीI शव को ऑफिस के बाहर रख कर पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगने लगेI
अंत में कलेक्टर साहब को स्वयं बाहर आना पड़ाI भीड़ की मुख्य मांग थी कि पोस्ट मोर्टेम दोबारा किया जाये और राकेश को अविलम्ब गिरफ्तार किया जाये I
कलेक्टर साहब ने शांत आवाज़ में भीड़ को समझाया,"मुझे इस घटना से बहुत दुःख पहुँचा है Iआप लोग शांति बनाये रखेI मैंने दोबारा पोस्ट मोर्टेम करने का आदेश सम्बंधित अधिकारीयों को दे दिया है Iसाथ ही मैंने पुलिस कप्तान महोदय को भी ये निर्देश दिया है की जल्दी से जल्दी हत्यारे को पकड़ा जाये और सजा दिलवाई जायेI पुलिस मुस्तैदी से अपना कार्य कर रही हैI एक दो दिन में आपको रिजल्ट दिखाई देगाI ये मेरा वादा है आपसेI"
कलेक्टर साहब के आश्वाशन से संतुष्ट हो सभी लौट चलेI शव को दोबारा पोस्ट मोर्टेम के लिए भेज दिया गया I
सभी के अंदर राकेश को लेकर गुस्सा था, पर राकेश था कहाँ?
एक और दिन अफरा तफरी, उथल पुथल में निकल गयाI दोबारा पोस्ट मोर्टेम से नया कुछ नहीं निकलाI वही हत्या का कारण भारी और भोथरा हथियार, शरीर पर यौन उत्पीड़न का कोई निशान नहींI सोने की चेन भी हत्यारे ने नहीं छुई थी Iतो मारने का मकसद क्या था? और वो भी इतनी बेरहमी सेI बदला, हताशा, शायदI लेकिन राकेश था कहां?
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अगले दिन रीता की अंत्येष्टि हिन्दू रीति रिवाज़ों के अनुसार कर दी गयीI सभी लोग बेहद दुखी थेI एक मासूम लड़की, इतनी कम उम्र, कितनी बेरहमी से मारा गया था! आधा दिन वहीं घाट पर ही निकल गयाI रीता अग्नि को समर्पित हो चुकी थीI माँ बाप ने अपनी बेटी को खो दिया था, भाई ने अपनी बहन को और समाज ने एक निश्छल और निरपराध लड़की कोI सभी लौट गएI घर पहुँचते पहुँचते शाम हो गयीI मोहल्ले वालों के जाते जाते रात घिर आयी थी I
अचानक वर्मा जी का मोबाइल बज उठा I
"हेलो"
"हेलो"
"हाँ वर्मा जी मैं इंस्पेक्टर लाल चंद बोल रहा हूँI"
" हाँ अब क्या हुआ? क्या राकेश मिल गया?"
"कृपया पुलिस लाइन के प्रेस रूम में पहुँचने का कष्ट कीजियेI कप्तान साहब आपकी उपस्तिथि चाहते हैंI उनके आदेश पर ही मैं आपसे ये बात कर रहा हूँI उन्होंने कहा है की मैं आपको बता दूँ की पुलिस ने हत्यारे को पकड़ लिया हैI केस सॉल्व हो गया हैI"
"अच्छा हत्यारा पकड़ा गयाI राकेश को पकड़ लिया!"
"आपका इंतज़ार हो रहा है I जल्दी आइयेI"
वर्मा जी और उनके परिवार से रहा नहीं जा रहा थाI जल्दी जल्दी अपनी गाड़ी से वो लोग, वर्मा जी, उनकी पत्नी और बेटा सूरज सब आधे घंटे में ही पुलिस लाइन पहुँच गए I
पलिस लाइन का प्रेस रूम पत्रकारों से खचाखच भरा था Iअख़बार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया सभी पहुँच चुके थेI वर्मा जी को ये सब अच्छा नहीं लग रहा थाI इस सबकी क्या ज़रुरत थीI एक पीड़ित परिवार की पीड़ा का ढिंढोरा क्यों पीटा जा रहा था? साधारण सा नहीं रख सकते थेI तभी कप्तान साहब, श्री राघवन, अंदर आयेI माइक संभाल कर उन्होंने अपना गला खंखारा I
"मित्रों, ये प्रेस कांफ्रेंस अचानक बुलानी पड़ीI क्या करे मैटर ही ऐसा है Iआज मैं पुलिस विभाग की ओर से यह बताना चाहता हूँ की पुलिस ने रीता मर्डर केस को सॉल्व कर लिया हैI तथ्य चौंकाने वाले है Iअपराधी पुलिस के कब्ज़े में है Iजल्दी ही उसे आपके सामने लाया जायेगा I"
इतना कहने के बाद राघवन साहब ने अपनी नज़र इंस्पेक्टर लाल चंद की तरफ घुमाईI
"इंस्पेक्टर साहब, हत्यारे को ले आइये Iसबको देखने दीजियेI इस नृशंश हत्यारे को, जिसने इतनी बेरहमी से क़त्ल किया हैI"
"सर" लाल चंद अपराधी को प्रेस के सामने लाने चल दिए I
ये क्या ! पूरे प्रेस रूम में सन्नाटा छा गयाI सबके मुँह खुले के खुले रह गए Iअपराधी आँखों के सामने थाI पर आँखें विश्वाश नहीं कर पा रही थींI रीता के परिवार को तो जैसे लकवा मार गया I
लाल चंद के साथ जो अपराधी था, नहीं जो अपराधी थी, वो रीता थी! वो रीता, जिसकी नृशंश हत्या हो चुकी थी, वो सबके सामने खड़ी थीI वो रीता, जिसका शरीर अग्नि को समर्पित किया जा चुका था, वो सबके सामने खड़ी थीI रीता!! अगर वो यहाँ खड़ी थी, तो हत्या किसकी हुयी थी? अगर वो यहाँ खड़ी थी, तो किसकी लाश को जलाया गया था ?
"मित्रों, अपराधी आप सब के सामने है। रीताI हां, वहीं असली अपराधी है । लेकिन वो अकेली अपराधी नहीं हैI हाँ मास्टरमाइंड वहीं हैI रीता खुद आपको अपने कुकर्मों की कहानी बताएगीI कुकर्म, शायद कुछ हल्का शब्द हैI रीता का अपराध मानवता के खिलाफ हैI इसने अपने परिवार, सम्बन्धियों, दोस्तों सभी को धोखा दिया हैI इसकी कहानी इसी से सुनिए I
नोट:- रीता की कहानी और उसके अपराध का कारण अगले भाग में, इंतजार कीजिए, लाश की गवाही भाग 2 का I
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