आज मैं एक शब्द हूँ,
अव्यक्त
अनसुना सा।
आज मैं एक शब्द हूँ,
अपरिचित
कुछ छुपा सा।
आज मैं एक शब्द हूँ,
अलिखित
कुछ मिटा सा।
आज मैं एक शब्द हूँ,
अव्यक्त, अपरिचित, अलिखित सा।
ऐसा क्या है जो मुझमें नही है?
मेरा व्यक्तित्व खुला आसमान है।
मेरी अस्मिता मुझमे विद्यमान है।
ऐसा क्यों है?
जब ये शब्द मुखर हो जाएगा,
हर गली नुक्कड़ पर पहचाना जाएगा,
जब इस शब्द की अपनी कीमत होगी,
इसकी गूँज कोने कोने होगी।
तब तुम,
अपना लोगे,
अपना पन्ना दोगे,
शब्द को वाक्य कहोगे!
अभी,
क्या कमी है मुझमे?
एक बार सिर्फ एक बार,
पढ़ो तो सही।
क्योंकि,
समय आएगा,
जब ये शब्द विचार में बदल जायेगा,
गगनचुंबी पताकाएं फहराएगा,
और शब्दों को दिशा दिखलायेगा।
ऐसा होने तक,
ये विचार एक शब्द है,
अव्यक्त, अपरिचित, अलिखित सा।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
bahut khub
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