अगला दिन ...
सुमन के सर में हल्का हल्का दर्द हो रहा था। रामू स्कूल जा चुका था। महेश को आज अपने अधीन थानों की चेकिंग पर निकलना था। वो भी तैयार हो रहा था। सुमन ने पीछे से आकर उसे बाहों में भर लिया।
"क्या तुम्हें यकीन है कि उन्होंने रामू को मारा है?" सुमन संयत होने का असफल प्रयास कर रही थी।
"कुछ भी हो सकता है सुमी। रामू ने पूरी घटना इतने विस्तार पूर्वक बताई है कि यकीन ना करने की कोई वजह समझ में नहीं आ रही है। मैं एक पुलिसवाला हूं । सभी पे शक करना, और हर बात की तह तक पहुंचना मेरा काम है। मैं इसकी जड़ तक पहुंच कर ही दम लूंगा। हर फाइल को जाचूँगा, हर जगह पर खोजुंगा। अपराधी को उसके अपराध की सज़ा मिलनी ही चाहिए। ये एक पुलिसवाले और एक पिता की प्रोमिस है, गुड बाय", कहते हुए महेश ने उसके होठों को चूम लिया। बाहर उसकी गाड़ी खड़ी थी। ऑफिस निकल गया।
थानों की चेकिंग आदि करने में शाम हो गई। साढ़े पांच बजे के लगभग उसे फुरसत मिली। कोतवाली इंचार्ज इंस्पेक्टर लाल चंद को लेकर वो महेश्वर डैम थाने की तरफ निकल गया। उसके आने का वायरलेस पहले ही किया जा चुका था। लगभग एक घंटे में वो लोग वहां पहुंच गए। वहां उसकी प्रतीक्षा हो रही थी।
"जय हिंद सर। आपके बारे में बहुत सुना था सर। आज आपसे मिलने का सौभाग्य मिला है। आदेश दें", महेश्वर डैम इंचार्ज ने विनम्रता पूर्वक कहा।
"धन्यवाद। मैं यहां एक पुराने केस के बारे में कुछ जानकारी लेने आया हूं। मैं यहां एक पुराने केस के बारे में जानने आया हूं जिसमे पांच लोग सम्मिलित थे। वो यहां पिकनिक करने आए थे। उनमें से एक व्यक्ति गायब हो गया था। जरा पुरानी फाइलें देख कर पता करिए किसी व्यक्ति के गायब होने या हत्या आदि की कोई शिकायत या FIR तो नहीं है। वो नाम जो आपकी सहायता कर सकते हैं वो श्याम, आनंद, राजन और चौथा शायद मृतक का भाई था। हो सकता हो हों या ना हों। पर ये तो निश्चित है की पांच लोग थे जो पिकनिक पर आए थे" महेश्वर डैम थाना इंचार्ज तत्परता से नोट कर रहे थे जो कुछ महेश कह रहा था, "मैं कल आपसे मिलता हूं।"
"सर।"
महेश्वर डैम इंचार्ज ने महेश को विदा किया।
अगला दिन ...
महेश आज लाल चंद और चार कॉन्स्टेबल के साथ था। घंटे भर में पूरी टीम उस पुल के पास पहुंच गई।
"लाल चंद, उस चट्टान के पास, वहां ऊपर, हम लोग लोहे की रॉड या ऐसी ही किसी चीज़ की खोज में हैं। कोई और संदेहास्पद चीज़ हो तो उसको भी देखना है", महेश का आदेश स्पष्ट था।
लाल चंद सिपाहियों को लेखन ऊपर चट्टान की तरफ चल दिए।
लगभग एक घंटे बाद एक कॉन्स्टेबल जोर से चिल्लाया, "मिल गया!!"
कोई तीन साढ़े तीन फिट की लोहे की रॉड उसके हाथ में थी। उसका एक सिरा थोड़ा मुड़ गया था, शायद किसी चीज़ से टकराने के कारण। महेश जानता था या सोच रहा था की इसके मुड़ने का कारण क्या था। इसी बीच एक और कॉन्स्टेबल भागा भागा आया। उसके हाथ में चांदी की अंगूठी थी। सांप की बनावट वाली। कालसर्प योग वाले जैसी पहनते हैं। अंगूठी के गोल वाले हिस्से पर अंग्रेजी का अक्षर 'U' उकेरा हुआ था। कोई एक घंटे और खोज जारी रही। लेकिन मतलब की और कोई चीज नहीं मिली। इन चीजों को लेकर महेश अपनी टीम के साथ महेश्वर डैम थाने की तरफ चल पड़ा। थाना इंचार्ज बाहर ही खड़े थे।
"जय हिंद सर। कैसे हैं सर।" थाना इंचार्ज ने सैल्यूट किया।
"जय हिंद। ठीक हूं। मैने जो बातें कल आपसे की थी, ऐसा कोई केस आपकी जानकारी में आया?"
अंदर बैठने के बाद महेश्वर डैम इंचार्ज ने बोलना शुरू किया।
"हां सर। एक फाइल सामने आई है। पांच लोग कोई दस साल पहले, यहां पिकनिक पर आए थे। उनमें से एक, जिसका नाम उत्तम था, करणी नदी के उफान में बह गया था। उसका शव नहीं मिल पाया था। कंप्लेन रमेश नाम के व्यक्ति ने की थी। वो उत्तम का बड़ा भाई था। बाकी तीन व्यक्तियों के नाम वही थे जो अपने बताए थे। राजन, आनंद और श्याम। उत्तम बिजनेसमैन था। बाकी चारों एक बीमा कंपनी में काम करते हैं। लेकिन सर, इस केस को तो बंद हुए ही नौ साल बीत चुके हैं। घटना भी दस साल पुरानी है। अंतिम रिपोर्ट भी लग चुकी है। अब?" महेश्वर डैम इंचार्ज ने पूरा विवरण देते हुए कहा।
महेश के लिए अब खड़ा हो पाना मुश्किल ही नहीं असंभव था। चुपचाप वो कुर्सी के हत्थे को पकड़कर, बैठ गया। उसका सर चक्कर खा रहा था। सामने रखे गिलास से दो घूंट पानी पिया। सबसे अंजान एक अद्भुत घटना उसके सामने घटित हो रही थी। अद्भुत, अविश्वशनीय किंतु सत्य!! पुनर्जन्म, हत्या, सबूत, सगा भाई हत्यारा। हे भगवान!!
उसने लोहे की रॉड और अंगूठी थाना इंचार्ज को सौंपते हुए कहा, "ये एक हत्या से जुड़े सबूत हैं। इनको सावधानी पूर्वक अपनी निगरानी में ले लीजिए। ये एक जटिल केस में आपकी सहायता करेंगे। वैसे ये चार किस बीमा कंपनी में काम करते हैं।"
"सम्पूर्ण बीमा कंपनी सर। कोई खास बात सर? आदेश दें।"
महेश्वर डैम इंचार्ज को महेश की बात की सींग पूंछ, कुछ भी समझ में नहीं आ रही थी। बस वो सुनते जा रहे थे।
"नहीं नहीं। बहुत बड़ा काम किया है आपने। हम लोग अब चलेंगे। बहुत काम पड़ा है। लाल चंद, इंचार्ज साहब से फाइल ले लो", कहते हुए महेश बाहर चल दिया।
लाल चंद ने फाइल ले ली और पूरी टीम वहां से निकल गई।
"कहां चलना है सर?" लाल चंद ने महेश की तरफ देखते हुए कहा।
"सम्पूर्ण बीमा कंपनी। उसके सिटी ऑफिस चलते हैं। बाकी लोगों को थाने वापिस भेज दो।"
महेश और लाल चंद महेश की गाड़ी से बीमा कंपनी को चल दिए। बाकी सिपाही जिस जीप से आए थे, उसी से कोतवाली चले गए।
महेश के विचारों में उथल पुथल मची हुई थी। लगभग देढ़ घंटे में वो लोग सिटी ऑफिस पहुंच गए। अंदर एक बड़ा सा हाल था। सामने ही प्रबंधक का ऑफिस था। लाल चंद ने बाहर बैठे चपरासी को अपना परिचय दिया। चपरासी अंदर गया और मिनट भर में ही बाहर आ गया और दरवाजे को खोल कर एक तरफ खड़ा हो गया। महेश और लाल चंद अंदर चले गए।
"मैं डिप्टी एस पी महेश सक्सेना हूं। ये मेरे सहायक कोतवाली इंचार्ज लाल चंद हैं। मैं आपसे कुछ जानकारी चाहता हूं। कोई नौ दस साल पहले, आनंद आहूजा नाम के व्यक्ति के परिवार को क्या आपके यहां से इंश्योरेंस की कोई धनराशि दी गई थी। वो कोई दस साल पहले करणी नदी में हुई एक दुर्घटना में बह गए थे। घटना 2 दिसंबर 2010 की है।" प्रबंधक महोदय ध्यान से महेश की बात सुन रहे थे।
"सर केस काफी पुराना है। समय लगेगा। आप या तो इंतजार कर लीजिए या कल आइए। जैसे ही जानकारी जुट जायेगी मैं आपको कल फोन कर दूंगा।"
"नहीं नहीं, कोई बात नहीं मैनेजर साहब। हम लोग रुकेंगे।" महेश के लिए कल तक रुक पाना असम्भव था।
"तो सर, आप लोग लाउंज में बैठे। मैं जानकारी इक्कठी करता हूं।"
महेश और लाल चंद बाहर लाउंज में बैठ गए। कोल्ड ड्रिंक की बोतल सामने रखी थी। महेश ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। लाल चंद को प्यास लगी थी। लेकिन उन्होंने भी कोल्ड ड्रिंक को हाथ नहीं लगाया। महेश आंखें बंद किए गहन चिंता में पड़ा था। कोई एक घंटे बाद चपरासी आया और कहा की मैनेजर साहब उन लोगों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
"सर। जैसा की आपने पूछा था, इंश्योरेंस की धनराशि, रीता आहूजा को दी गई थी। ये उत्तम आहूजा की विधवा हैं। उत्तम के भाई, रमेश, इसी ऑफिस में काम करते थे। उन्हीं की वजह से इस केस में जल्दी कार्यवाही हुई और अप्लिकेशन को तुरंत निपटाया गया। रमेश का क्या कहें सर। हीरा हैं हीरा!"
"हूं", अपने गुस्से को किसी तरह महेश ने जब्त किया। "रमेश से हम लोग कैसे मिल सकते हैं?"
"वो तो सर अब ब्रांच नंबर 2 में काम कर रहे है। वही कैंपस में अपने परिवार के साथ वो रह रहे हैं। जैसा मैंने बताया था सर, बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी खुशियों को त्याग कर, अपने छोटे भाई की विधवा से कोई एक साल बाद विवाह कर लिया। बेचारी की दुख भरी जिंदगी को सहारा मिल गया।"
महेश का पूरा शरीर गुस्से से कांप रहा था। उसकी लाल लाल आंखे देख कर एक बारगी तो मैनेजर साहब भी सकते में आ गए।
"क्या हुआ सर?" पूछ बैठे।
"कुछ नहीं, कुछ नहीं। यूं ही बस।" महेश ने किसी तरह खुद को नियंत्रित किया। "चलता हूं। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने बहुत बड़ी सहायता की है मेरी। लाल चंद", कहते हुए महेश बाहर आ गया।
केस अब पूरी तरह से महेश को समझ में आ गया था। पर अपराधी सिर्फ चार नही थे। एक नाम और जुड़ गया था। रीता आहूजा का।
टिप्पणी:- कहानी का शेष, भाग - 4 में। इंतजार कीजिए।
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