मंडे मॉर्निंग कितनी बोरिंग होती है ना, दो दिन की छुट्टी के बाद अॉफिस जाना कितना बोझिल लगता है। मैं भी अनमना सा बस स्टॉप की ओर चल पड़ा। मुंबई शहर को संडे, मंडे से कोई फर्क ही नहीं पड़ता ,वो बस अपनी रफ्तार से चलता रहता है। मेरे जैसे कितने लाख लोग, यहाँ अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में अपना घर बार छोड़कर रहते हैं। यही सब सोचता हुआ बस का इंतज़ार कर रहा था कि नज़र पास खड़ी लड़की पर पड़ी, यूँ न जाने कितनीं लड़कियां रोज़ ही आँखो के सामनें से गुजरती हैं। लेकिन उसकी आँखों के नीचे का वो बर्थमार्क मुझे उसकी ओर देखने पर मज़बूर कर रहा था।
उसे देखते ही पूजा याद आ गई। उसकी आँखो के नीचे भी तो ठीक ऐसा ही बर्थमार्क था, और ऐसी ही नुकीली नाक...पूजा मेरा पहला और आखिरी प्यार..ठीक से याद नहीं कि जब पहली बार फर्स्ट क्लास में उसे देखा था तब उससे प्यार हुआ,या साथ पढ़ते,लड़ते- झगड़ते फिफ्थ या सेवेंथ में..लेकिन उसका एहसास तब हुआ जब वो शहर छोड़कर चली गई और मैं उसे बता भी ना पाया कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ। फिर कितना ढूँढा उसे फेसबुक पर, लेकिन नहीं मिली। और उसके बाद ना मुझे कोई पसंद आई और ना कोई उस जैसी मिली। माँ भी रिश्ते देख-देख कर थक गई।
मैं जब अपने विचारों से बाहर आया तब तक वो जा चुकी थी। मैनें भी यह सोचकर कि पूजा मुंबई में कैसे हो सकती है, अपनी यादोंं को झटक बस में चढ़ गया। लेकिन अब तो रोज ही वो बस स्टॉप पर दिखने लगी, और उसे देख पूजा वाली फीलिंग आने लगी। शायद वो भी मेरा उसे यूँ देखना नोटिस कर रही थी। आखिर एक दिन मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने सीधा जाकर उससे पूछ ही लिया "एक्सक्यूज मी क्या आपका नाम पूजा है"..वो थोड़ी देर मुझे घूरती रही, यकीन मानों मेरी हार्टबीट मेरे कंट्रोल से बाहर थी.."हाँ ..लेकिन तुम्हें मेरा नाम कैसे पता चला" उसने कहा तो मै तो उछल ही पड़ा "पूजा...भोपाल से" मैने जोर से कहा.."हाँ..लेकिन तुम कैसे जानते हो?" "अरे मैं सागर...हम साथ पढ़ते थे..कुछ याद आया" मैं खुशी से चहकते हुए बोला.."वाउ..हाय सागर..तुम तो बिल्कुल बदल गए, तुम यहाँ कैसे" उसने कहा "मैं यहाँ एम.एन. सी में जॉब करता हूँ, मैं बता नहीं सकता तुम्हें देखकर मैं कितना खुश हूँ," "तुम यहाँ कैसे?" मैने पूछा..मेरा बस चलता तो वहीं उसे गले लगा लेता "मैं कॉलसेंटर में काम करती हूँ,एक्चुअली मेरे हसबैंड मुंबई के है उसकी लास्ट लाइन सुकर लगा धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँँ। उसकी बस आ गई थी "कल मिलते हैं कहकर वो चली गई। और मैं भी लगभग घसीटते हुए अॉफिस पहुँचा।
अगले दिन अनमना सा बस स्टॉप पर खड़ा था। मेरे दिल के हजारों टुकड़े जो हो गए थे। तभी वो आई "हाय सागर कैसे हो" उसने पूछा"ठीक ही हूँ" मैंने कहा, उसकी आँखोंं में अजीब सी उदासी थी, और बार-बार अपने हाथ को दुपट्टे के नीचे छुपा रही थी। मैंने पूछा क्या हुआ "तुम ठीक तो हो" बस.. उसकी आँखे बरस पड़ी। मैंने कहा सम्हालो अपने आप को,चलो पास के रेस्टोरेंट चलते हैं, तुम थोड़ी देर से अॉफिस चली जाना। वो चुपचाप मेरे साथ चली आई ,उसे पानी पिलाया, दो कॉफी और सैड़विच अॉर्डर किए, तब तक वो थोडा संभल गई थी। फिर पूछा क्या हुआ पूजा कोई परेशानी है क्या?उसने जो बताया सुनकर मेरे होश ही उड़ गए। उसके मम्मी-पापा की एक्सीडेंट में मौत हो गई, बड़े पापा ने ज़बरदस्ती उसकी शादी राज से करा दी, राज और उसकी माँ रोज ही पूजा को पीटते हैं, उसकी सैलरी ले लेते हैं, ठीक से खाने को भी नहीं देते। उसने कहा "सागर कभी-कभी तो लगता है मर जाऊँ,लेकिन हिम्मत नहीं होती,देखो आज मेरा हाथ जला दिया उन लोगो ने, पता नहीं क्यों जिंदा हूँ" उसनें मेरी आँखो में देखते हुए कहा। "मेरे लिए पूजा, मैं तो कब से तुम्हें चाहता हूँ, कितना ढूँढा तुम्हें तुम मिली नहीं, और मिली हो तो अब...ऐसे... ।लेकिन अब और नहीं, मैं निकालूँगा तुम्हें इस दलदल से "मैं एक सांस में कह गया, खुद को शाहरुख खान समझ रहा था मैं उस समय। "सच में सागर ,तुम मेरी मदद करोगे" कहते हुए उसने अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया। हाँ पूजा तुम चिंता मत करो "मैं हूँ ना"।
उस रात नींद ही नहीं आई,सारी प्लानिंग कर ली थी मैंने। महिला मुक्ति केंद्र जाकर केस फाइल करवाया ,और तलाक के पेपर तैयार करवाए ,अब तक की सारी सेंविग्स लगा दी पूजा के पीछे। घर पैसे नहीं भेजे कमरे का किराया नहीं दिया। पूजा के पति और सास कहते रहे कि हम बेकसूर हैं हमनें कुछ नहीं किया, लेकिन हम पीछे नहीं हटे।ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। वो लोग भी इतना टार्चर हुए कि हार मान ली और पूजा के पति ने तलाक के पेपर साइन कर दिए। उस दिन पूजा कितना खुश थी, और मैं ...मैं तो जैसे उड़ रहा था "किसी को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने में लग जाती है" ये डायलॉग सच लग रहा था। पूजा अगले दिन मिलने का वादा करके चली गई। और मैं भविष्य के सपनें बुनता रात भर सो नहीं पाया।
अगले दिन समय से पहले ही पहुँच गया, काफी देर इंतजार किया ..लेकिन पूजा नहीं आई..उसके घर गया तो ताला था। हर उस जगह ढूँढा.. जहाँ पूजा के मिलने की संभावना थी। मेरा दिल बैठा जा रहा था। दिन,महीनें, लगभग साल बीत गया..मैं गुमसुम उदास अपने में ही खोया सा रहने लगा। उस दिन कुछ दोस्त ज़बरदस्ती पब लेकर गए, मेरा मन नहीं था, तो मैं बाहर ही बैठा था कि एक बड़ी सी गाड़ी आकर रूकी। उसमें से एक हैंडसम सा लड़का उतरा, फिर उसने बड़े अदब से दूसरा दरवाजा खोला...और बेहद कीमते कपड़े और ज्वेलरी पहने..एक लड़की निकली। वो पूजा जैसी लग रही थी...नहीं वो पूजा ही थी। मैं कूद कर उनके सामने पहुँच गया "पूजा....तुम ..यहाँ..मैनें तुम्हे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा।" मैं एक सांस में कह गया "अरे सागर तुम...विशाल ये सागर है जिसनें मेरा डाइवोर्स कराने में मदद की, और सागर ये हैं विशाल..लव अॉफ माई लाइफ,और मेरे बॉस भी....अब अगर मैं अपने पति से कहती कि मुझे तलाक दे दो मुझे मेरे बॉस से शादी करनी है,तो वो कभी नहीं मानते हैं ना...इसलिए वो ड्रामा करना पडा़,बाइ द वे थैंक्स अ लॉट...,तुम ना होते तो ये कभी नहीं हो पाता"..कहते हुए वो चली गई.. मैं चिल्लाया"पूजा..पूजा सुनो तो"वो पलट कर आई "मेरा नाम पूजा नहीं ऋतु है..और ये बर्थमार्क... इट्स जस्ट अ कोइंसिडेंट बेबी" ..वो चली गई.. और मैं लुटा-पिटा उसे जाते हुए देखता रहा।
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